निकानोर पार्रा की एक कविता...
निकानोर पार्रा की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
खेलों को मैनें त्यागा धर्म के लिए
(हर इतवार को मैं प्रार्थना सभा में जाता था)
धर्म को छोड़ा कला के लिए
और कला को गणितीय विज्ञान की खातिर
जब तक कि आखिरकार ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो गई
और अब मैं महज एक दर्शक हूँ, जिसकी
सम्पूर्ण या उसके किसी अंश में श्रद्धा नहीं रही.
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Manoj Patel, Tamsa Marg, Akbarpur, Ambedkarnagar, Mobile : 09838599333
मैं सहमत हूं और खुद की मनःस्थिति को इस कथ्य के करीब पाती हूं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen " पर भी पधारने का कष्ट करें.
उत्तम कथ्य ....यह कविता नहीं लेखिक के एकांत का प्रवेश द्वार है /
ReplyDeleteएक नास्तिक आदमी का आस्थापूर्ण वक्तव्य.
ReplyDeleteनीरस से सरस या सरस से नीरस की यात्रा!
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