एदुआर्दो गैल्यानो की किताब 'मिरर्स' से एक और अंश...
वे ख़बर नहीं हैं : एदुआर्दो गैल्यानो
(अनुवाद : मनोज पटेल)
भारत के दक्षिण के नाल्लामदा अस्पताल में एक असफल आत्महत्या को होश आ जाता है.
उसके बिस्तर को घेरे खड़े लोगों के चेहरे पर मुस्कान है जिन्होनें दुबारा उसमें जान फूंकी है.
बचने वाला उन्हें घूरता है और कहता है :
"आप लोग किस बात की उम्मीद कर रहे हैं, किसी धन्यवाद की? मेरे ऊपर एक लाख रूपए बकाया थे. अब इसमें अस्पताल के चार दिन का खर्च और जुड़ गया. बड़ी मदद की आप मूर्खों ने मेरी."
हम आत्मघाती हमलावरों के बारे में बहुत कुछ सुनते हैं. मीडिया रोज उनके बारे में शोर मचाता रहता है. मगर आत्मघाती किसानों के बारे में हम कभी कुछ नहीं सुनते.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ भारतीय किसान बीसवीं सदी के ख़त्म होने के बाद से एक हजार प्रतिमाह की दर से लगातार आत्महत्याएं कर रहे हैं.
तमाम किसान उन कीटनाशकों को पीकर अपनी जान दे देते हैं जिनका पैसा वे नहीं चुका सके.
बाजार उन्हें कर्ज की तरफ धकेल देता है और चुकता न किया गया कर्ज कब्र में. उनके खर्च बढ़ते जाते हैं और कमाई कम होती जाती है. वे ऊंची कीमतों पर खरीदते हैं और घटी हुई सस्ती कीमतों पर बेचते हैं. उन्हें विदेशी रासायनिक उद्योगों, आयातित बीजों और जीन संवर्धित फसलों द्वारा बंधक बना लिया जाता है. कभी भारत भोजन करने के लिए काम करता था. अब भारत भोजन बनने के लिए काम करता है.
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Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte
उद्वेलित करती है. आत्महत्या की कोशिश के बाद बचाए जाने पर जो बयान है, किसान का वह सभ्यता और विकास की गौरव गाथा के गाल पर तमाचा है.
ReplyDeleteबहुत बड़ा तमाचा. और हमारी सभ्यता यह तमाचा डिज़र्व करती है.
Deleteसच है और दुखद भी ....
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट.
कभी भारत भोजन करने के लिए काम करता था, अब भारत भोजन बनने के लिए काम करता है.
ReplyDeleteहमारे लातिन अमरीकी दोस्त ने मेरे दिल की बात कह दी....
कभी भारत भोजन करने के लिए काम करता था, अब भारत भोजन बनने के लिए काम करता है.
ReplyDeleteहमारे लातिन अमरीकी दोस्त ने मेरे दिल की बात कह दी....
आत्महंता का बयान किसानों की शोचनीय दशा को बखूबी उजागर करता है.इसके लिए नव्य-उदारवाद का पुराष्करण करने वाली सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं ,जिनमें तुरंत बदलाब की जरुरत है|
ReplyDeleteसलाम गैलियानो...शायद तुम्हारा कहा इस देश के हुक्मरानों के कान तक पहुंचे...
ReplyDeleteकाश ! .......
Deleteउस बात को कहने के लिए मैं कुछ कान तलाश रहा हूँ जो पता नही तलाश पाऊँगा या नहीं .
यह कविता चीख-चीख कर कहती है कि--"भारत किसानों का देश नहीं है ",यह आत्महत्या के लिए मजबूर किसानो का देश का देश है ताकि कृषी क्षेत्र पर पूंजीपतियों की कब्जेदारी स्थापित की जा सके और शहरों में सस्ता मजदूर उपलब्ध रहे ! आभार मनोज जी ! बेचैन कर गई यह कविता !
ReplyDeletekahne ko hamara desh gaon ka desh hai par yaha vikas kewal shahro me hi dikhta. ek taraf jaha log luxury gadiyo me ghumte hain wahi doosri taraf ek bada tabka khane k liye tarasta hai. yah bahut hi bura haal hai is desh ka. kisan jo desh ki jaan hain unke liye sarkar ko neetiyan banani chahiye taki kisi kisan ko aisa kadam na uthana pade.
ReplyDeleteजय जवान जय किसान नारे को पीछे छोड़!
ReplyDeleteअपने राजतंत्र में केवल लूट खसोट की होड़!
लुप्त हुए अपनी संस्क्रति को दर्शाते पुस्तकालय!
और उनकी जगह ले गए गली गली मदिरालय!
गरीब के आसु देखें कौन जब इनकी ही कमर तोड़!
यह नेता सारे धन दौलत रहे अपने खाते में जोड़!
त्रासदी का आलम ऐसा की जीते जी मरता इनसान है!
जिसके खातिर विश्व पटल पर शर्मशार हिंदुस्तान है!
भूमि को सीच धरती की प्यास बुझाते किसान!
पर अपनी भूख मिटाने की अस्मर्थता से परेशान!
अस्मर्थता से उद्देलित हो गँवा बैठते अपनी जान!
लानत और मनानत इस राजतंत्र जो बन बैठा अनजान!
बेरोजगारी ने जाने कितने युवाओं के सपने दिए तोड़!
कर्म पथ भ्रमित कर कदम अपराधिकता पर दिए मोड़!
इस शोचनीय दशा पर मन विचलित घनघोर!
अपने ही अपने को लूटे तो कौन मचाये शोर!
जय जवान जय किसान नारे को पीछे छोड़!
अपने राजतंत्र में केवल लूट खसोट की होड़!
भारत में सरकारें किसानों से लूटकर पूंजीपतियों को बांटने का काम कर रही है जिसका नतीजा है -किसान आत्महत्या.
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