लैंग्स्टन ह्यूज की एक और कविता...
भूखे बच्चे से ईश्वर : लैंग्स्टन ह्यूज
(अनुवाद : मनोज पटेल)
भूखे बच्चे,
मैनें यह दुनिया तुम्हारे लिए नहीं बनाई.
तुमने मेरी रेलवे में पूंजी तो लगाई नहीं.
मेरे निगमों में पैसा नहीं लगाया.
कहाँ हैं स्टैण्डर्ड आयल के शेयर तुम्हारे?
मैनें अमीरों के लिए बनाई है यह दुनिया
और उनके लिए जो अमीर होने वाले हैं
और उनके लिए जो हमेशा से रहे हैं अमीर.
तुम्हारे लिए नहीं,
भूखे बच्चे.
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Manoj Patel, Tamsa Marg, Akbarpur, Ambedkarnagar, (U.P.), 09838599333
कितनी कड़वी है ईश्वर की यह स्वीकारोक्ति ! बेहद मार्मिक ! आभार मनोज जी ,इस कविता और उसके अनुवाद के लिए !
ReplyDeleteईश्वर सत्य कैसे बोल गया ?
ReplyDeleteसच का आयना ........
ReplyDeleteईश्वर पर लोगों के बढ़ते अविश्वास ने ईश्वर को मजबूर कर दिया कि वह सच बोले, और सच के सिवा कुछ न बोले. बच्चे से झूठ आसानी से बोला जा सकता था, पर यह ईश्वर की हताशा है जिसने उसे एक बार तो सच बोलने को विवश कर ही दिया.
ReplyDeleteइस जनतंत्र में ईश्वर ही अधिनायक है...उसका मूड किया बोल गया.
ReplyDeleteकवि की संवेदना ऐसा भी सोच सकती है।
ReplyDeleteमार्मिक रचना !
ReplyDeleteBitter truth . Mythology and contemporary time's human lust for money and nexus are exposed!
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता
ReplyDeleteजिसे ग़रीबों का कहिये ख़ुदा ख़ुदा भी नहीं
ReplyDeleteजिसे ग़रीबों का कहिये ख़ुदा ख़ुदा भी नहीं
ReplyDeleteअच्छी कविता, सुन्दर अनुवाद…
ReplyDeleteईश्वर बड़ा दयालु है !
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