लैंग्स्टन ह्यूज की एक और कविता...
फ्लोरिडा सड़क मजदूर : लैंग्स्टन ह्यूज
(अनुवाद : मनोज पटेल)
अरे सुनो यार!
मेरी तरफ देखो!
एक सड़क बना रहा हूँ मैं
कारों के सरपट दौड़ने के लिए,
बना रहा हूँ एक सड़क
झाड़-झंखाड़ के बीच से
ज्ञान और सभ्यता के
सफ़र के लिए.
एक सड़क बना रहा हूँ मैं
अपनी बड़ी-बड़ी कारों में
अमीरों के फर्राटा भरने के लिए
और मुझे यहीं खड़ा छोड़ जाने के वास्ते.
यकीनन,
सड़क तो मदद करती है सबकी.
अमीर सवारी करते हैं अपनी मोटरों में --
और मैं देखने को पाता हूँ उन्हें सवारी करते.
मैनें पहले कभी नहीं देखा किसी को
इतने शानदार ढंग से सवारी करते.
अरे यार, देखो तो!
एक सड़क बना रहा हूँ मैं!
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Manoj Patel, Blogger & Translator, Tamsa Marg, Akbarpur, Ambedkarnagar, 09838599333
अमीर सवारी करते हैं अपनी मोटरों में और मैं..वाह..सुंदर प्रस्तुति....!!
ReplyDeleteएक सड़क बना रहा है, और दूसरा उस पर गाड़ी चला रहा है. जो बना रहा है, वह खुश हो रहा है कि कोई और उसकी बनाई सड़क पर इतने शानदार ढंग से सवारी कर रहा है. उसके स्वर में दर्द के साथ-साथ एक और भाव है जो अपनी नियति से घनघोर शिकायत का नहीं है, फिर भी.
ReplyDeleteये फरिश्ते हैं जो विकास की बुनियाद रखते हैं दूसरों के लिए । सड़क ही क्यों ये फरिश्ते सभ्यता को आकार दे कर लुप्त हो जाते हैं , बदले में पाते हैं आधा पेट भोजन ! सुन्दर कविता ! लेकिन क्या हमारी सभ्यता ने कोई उपाय खोजने की कोशिश की ?
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ..
ReplyDelete...........और मुझे यहीं खड़ा छोड़ जाने के वास्ते !
ReplyDeleteएक टीस- सी है जो निर्माण करने वाले के मन में उसके फल से वंचित रह जाने पर उठती है ,जो एक झूठे संतोष पर टूट जाती है !
अच्छी कविता का सहज और सुन्दर अनुवाद ! मनोज जी , आपको बहुत बहुत बधाई !
विकास की नीव रखने वाला आज भी वहीँ खड़ा है . हम अपने साथ उसे लेकर कब चलेगें ......................बहुत सुंदर प्रस्तुति .धन्यवाद
ReplyDeleteविकास की नीव रखने वाला आज भी वहीँ खड़ा है . हम अपने साथ उसे लेकर कब चलेगें ......................बहुत सुंदर प्रस्तुति .धन्यवाद
ReplyDeleteगहरा व्यंग्य है कविता में। मनोज जी को सन्दर अनुवाद के लिए बधाई।
ReplyDeletemanoj bhai aapki parkhi nazar vo dhoondh lati hai jiski hamare samaj ko asal me jarurt hoti hai.shandar kavita ka shandar anuvad.
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