एदुआर्दो गैल्यानो की किताब 'मिरर्स' से एक कहानी...
भाड़े के हत्यारे : एदुआर्दो गैल्यानो
(अनुवाद : मनोज पटेल)
आज-कल उन्हें सुपारी लेने वाले कहा जाता है.
सदियों पहले इटली में उन्हें कन्डोत्तिरी कहा जाता था. वे भाड़े पर उपलब्ध हत्यारे हुआ करते थे, और कन्डोत्ता शब्द ठेके के अर्थ में इस्तेमाल होता था.
पाओलो उस्लो ने अपनी पेंटिंग्स में इन लड़ाकों को इतने सुरुचिपूर्ण ढंग से कपड़े पहने और इतनी शालीनता से व्यवस्थित प्रस्तुत किया है कि उसकी पेंटिंग्स रक्तरंजित लड़ाइयों की बजाय फैशन शो अधिक प्रतीत होती है.
मगर कन्डोत्तिरी ऐसे मर्द हुआ करते थे जिनकी छाती पर बाल होते थे, जो और किसी चीज से नहीं डरते थे सिवाय शान्ति के.
अपनी नौजवानी में ड्यूक फ्रांसिस्को स्फोर्ज़ा भी ऐसा ही एक मर्द हुआ करता था और वह यह बात कभी नहीं भूलता था.
एक दोपहर जब ड्यूक मिलान से होकर गुजर रहा था तो उसने घोड़े पर बैठे-बैठे ही एक भिक्षुक की तरफ एक सिक्का उछाला.
भिक्षुक ने उसे बहुत आशीष दिया और प्रार्थना की :
"सर्वग्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः ..."
"क्या, शान्ति?"
तलवार के एक वार ने सिक्के को भिक्षुक के हाथों से गिरा दिया.
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Manoj Patel, 09838599333
नाम बदला है, काम वही है. नफ़रत का बिंदु भी वही है : शांति.
ReplyDeleteशांति का मतलब ,इनका धंधा ठप्प , तो फिर शांति कैसे बर्दाश्त हो !! बढ़िया कहानी ,मनोज जी !
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