अडोनिस की कविता, 'कविता से'...
(अनुवाद : मनोज पटेल)
जब तुम मेरे पास आओगी तो क्या अपना यह काला लिबास नहीं बदलोगी ? तुम क्यों जिद करती हो कि तुम्हारे हर लफ्ज़ में मैं रात का एक टुकड़ा रख दूं ? जबकि तुम कागज़ के टुकड़े पर चंद लफ्ज़ भर हो, कैसे और कहाँ से तुमने हासिल कर ली अन्तरिक्ष को भेद देने वाली यह गूंजती हुई ताकत ?
यह बुढ़ापा नहीं, बचपना है जो तुम्हारे चेहरे को झुर्रियों से भरे हुए है.
देखो कि कैसे दिन अपना सर सूरज के कंधे पर रखता है, और कैसे तुम्हारी सोहबत में, रात की जाँघों के बीच थककर मुझे नींद आ जाती है.
गाड़ी आ गई है, वह गाड़ी जो तुम्हारे पास अजनबी की चिट्ठियाँ लेकर आती है.
हवा से कह दो कि तुम्हें मेरे कपड़े पहनने से कोई भी चीज नहीं रोक सकती. मगर हवा से यह जरूर पूछना, "किस तरह का काम करती हो तुम, और किसके लिए ?"
खुशी और उदासी, ओस की दो बूँदें हैं तुम्हारे माथे पर, और ज़िंदगी एक बगिया जहां मौसम चहलकदमी करते हैं.
मैनें दो रोशनियों के बीच ऎसी जंग कभी नहीं देखी जैसी कि तुमसे निकलती, और उस स्त्री की नाभि से फूटती रोशनियों के बीच, जिससे मैं बचपन में प्रेम करता था.
क्या तुम्हें याद है कि कैसे पीछे-पीछे गया था मैं उस जंग के ? और कैसे एक बार वक़्त की तरफ मुड़कर मैनें उससे कहा था,
"अगर तुम्हारे पास सुनने के लिए दो कान रहे होते
तुमने भी पैदल नाप डाला होता पूरा ब्रम्हांड, भ्रमित और अस्त-व्यस्त,
नहीं हुई तुम्हारे अंत की शुरूआत."
क्या कभी बदलोगी तुम अपना यह काला लिबास जब मेरे पास आओगी ?"
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अली अहमद सईद असबार 'अडोनिस'
kahan se tumne haasil kar lee antriksh ko bhedti hui goonjti hui ye taaqat. ... nishabd ho jaati hoon in rachnaao ko padh kar. saabhar.
ReplyDeletemanoj odonis ko aapki kalam se padhna , sunanaa sukhkari anubhav hai .. badhai aapko .
ReplyDeleteउफ़, यह काला लबादा वह नहीं हटाती और यह लबादा है कि समाये हुए है अपने भीतर पूरा अंतरिक्ष !
ReplyDeleteऔर कविता , उस लबादे को मेरे खींचने और उसके लपेटने की जद्दो-जहद का नतीजा है !!
बड़ा गंभीर अर्थ समेटे है यह कविता ओडोनिस की ,धन्यवाद मनोज जी ,इस संग्रहणीय कविता के लिए !
कमाल की कविता है , एकदम अदभुत
ReplyDeleteगज़ब!!!
ReplyDeleteउत्तम कथ्य ....यह कविता नहीं लेखिका के एकांत का प्रवेश द्वार है /
ReplyDeleteउत्तम कथ्य ....यह कविता नहीं लेखिका के एकांत का प्रवेश द्वार है /
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