येहूदा आमिखाई की कुछ और कविताएँ...
मेयर
तकलीफदेह है
येरूशलम का मेयर होना --
भयानक है.
कोई कैसे हो सकता है ऐसे किसी शहर का मेयर?
वह इसका करेगा क्या?
बनाता जाए और बनाता जाए और बनाता जाए कुछ न कुछ.
और रात में पहाड़ों के पत्थर ढुलक आते हैं नीचे
घेर लेते हैं पत्थर के घरों को,
जैसे भेंडिए आते हों कुत्तों पर गुर्राने के लिए,
जो इंसानों के गुलाम बन बैठे हैं.
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किसी को भूलना
किसी को भूलना उसी तरह है
जैसे आप बत्ती बुझाना भूल जाएं मकान के पिछवाड़े की
और वह रोशनी करती रहे अगले पूरे दिन.
मगर यह रोशनी ही तो है
जो आपको याद दिलाती है.
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एक अनंत खिड़की
किसी बगीचे में मैनें सुना एक बार
कोई गीत या प्राचीन आशीर्वाद.
और काले पेड़ों के ऊपर
हमेशा रोशन रहती है एक खिड़की,
उस चेहरे की स्मृति में जो उससे बाहर झांका करता था,
और वह चेहरा भी
स्मृति में था
एक दूसरी रोशन खिड़की की.
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(अनुवाद : मनोज पटेल)
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