एक बार फिर अडोनिस...
पराग
कभी-कभी खेत में उग आती हैं कीलें,
खेत इतना चाहता है पानी को.
* * *
सर्दी का अकेलापन
और गर्मी की क्षणभंगुरता
जुड़ी है बसंत के पुल से.
* * *
आवाज़ भाषा की सुबह है.
* * *
मिट्टी एक देंह है
जो नृत्य करती है
सिर्फ हवा के साथ.
* * *
पराग 2
कुदरत बूढ़ी नहीं होती.
* * *
मैं एहसानमंद हूँ वक़्त का
जो उठा लेता है मुझे बाहों में
और मिटा देता है मेरे सारे रास्तों को.
* * *
अपनी बाहें फैला लो.
मैं देखना चाहता हूँ
उनके बीच
कांपती हुई अपनी स्मृति.
* * *
(अनुवाद : मनोज पटेल)
ली अहमद सईद अस्बार अदोनिस Ali Ahmad Said Esber Adunis | Adonis poems translated in Hindi by Manoj Patel अडुनिस
'अपनी बाहें फैला लो
ReplyDeleteमै देखना चाहता हूँ
उनके बीच
काँपती हुई अपनी स्मृति'......ओह!!!निःशब्द !!!!!
bahut badhiya hai ..
ReplyDeletekamaal hai manoj ji... khoobsoorat...
ReplyDeleteविलक्षण अर्थ-गाम्भीर्य समेटे हैं ये क्षणिकाएँ ! धन्यवाद मनोज जी !
ReplyDeleteमिट्टी एक देह है
ReplyDeleteजो नृत्य करती है
हवा के साथ
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बहुत खूबसूरत अहसास कराती पंक्तियाँ.
मैं अहसानमंद हूँ वक्त का
जो उठा लेता है अपनी बाहों में
मिटा देता है .......
विस्मृति ऐसी भी हो सकती है. वक्त किस कदर हमें अपने साथ बहाए ले जाता है कि दर्द भी मरहम लगते हैं.
सुंदर अनुवाद के लिए अभिनन्दन.
बेहद उम्दा रचनाएँ! सचमुच कुदरत फिर फिर युवा होने का राज जानती है!
ReplyDeleteमनोज जी..मेरा सलाम..मैं हर बार शब्दों की तलाश में बेआवाज़ हुई जाती हूँ..
ReplyDeleteअद्भुत... शब्द में कविता...
ReplyDeleteबेहतरीन संग्रह
ReplyDeletethanks for introducing Adonis in Hindi. Best Blog in Hindi Literature.
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