अडोनिस...
कष्टकर अनिद्रा आती है अपनी कंदीलें रोशन करने
क्या मैं वापस कर दूं अपने प्यार के ख़त उनकी रोशनाई को ?
क्या फाड़ डालूँ ये तस्वीरें ?
अभी पढ़ रहा हूँ अपनी देंह
और इस लम्बी रात की कंदील को भर रहा हूँ उदासी से
~ ~
रात में जांचता हूँ अपना घर जलाता हूँ बत्तियां
मगर वे जलती नहीं खिड़कियाँ ? खोलने लगता हूँ खिड़कियाँ
मगर उनसे भी नहीं आती कोई रोशनी / शायद कुछ रोशनी मिल सके
दरवाज़े से, मैं कहता हूँ
और खोलता हूँ दरवाज़ा मगर उजाला नहीं होता इससे भी / यहाँ अँधेरा किसी जख्म की तरह है
जो भरते हुए भी बहाता रहता है खून --
प्रेम मुझसे कहता है
ओह प्रिय, रोशनी कैसे चमक सकती है
जब आसमान धोखा दे रहा हो आसमान को
~ ~
मैं सीखता हूँ -- तुम्हारी आँखों की वर्णमाला में अपनी आँखें धंसाकर
और अगले ही पल देखता हूँ
कि कैसे तुम्हारी आँखें लिखती हैं मेरी आँखों को
कैसे फंसते हैं हमारे अंग
ज़िंदगी के फंदे में
कैसे घुल जाते हैं हमारे ख़्वाब
इस गतिहीन समय की झीलों में
~ ~
(अनुवाद : मनोज पटेल)
रौशनी कैसे चमक सकती है जब आसमान धोखा दे रहा हो आसमान को...क्या कहूं इसके बाद.
ReplyDeleteझरने सा झरता अनुवाद और यह कविता...