वेरा पावलोवा की एक कविता...
वेरा पावलोवा की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मुझे लगता है सर्दियों तक आ पाएगा वह.
सड़क की असहनीय सफेदी से
एक बिंदु उभरेगा, इतना काला कि आँखें धुंधला जाएं,
और बहुत, बहुत देर तक पास आता रहेगा वह,
धीमे-धीमे ख़त्म होती रहेगी उसकी गैरहाजिरी उसके आते जाने के अनुपात में,
और बहुत, बहुत देर तक बना रहेगा वह एक बिंदु ही.
धूल का कोई कण? आँख में कोई जलन? और बर्फ,
कुछ और नहीं सिर्फ बर्फ होगी वहां,
और बहुत, बहुत देर तक कुछ नहीं होगा वहां,
हटा देगा वह बर्फीला परदा,
वह आकार हासिल करेगा और तीन आयाम,
पास आता जाएगा, पास, और पास...
बस यह हद है, और पास नहीं आ सकता वह, मगर
वह आता जाएगा,
फिर इतना बड़ा कि नामुमकिन होगा मापना...
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''धीमे -धीमे ख़त्म होती रहेगी उसकी गैरहाजिरी ...''
ReplyDelete...............निःशब्द हूँ ! बेहद खूबसूरत अनुवाद !!!
दूरी और निकटता के मध्य का मौन बड़ी खूबसूरती से मन में मुखर होता है.
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