Sunday, July 3, 2011

एक परदेशी रहता है इस मकान में


अडोनिस की कविताएँ... 


चिथड़ा 

चहलकदमी कर रहा हूँ मैं  -- थामने के लिए कुछ नहीं सिवाय हाथों के 
                                           जिन्हें मैं बमुश्किल देख पाता हूँ.  
समय की पत्तियाँ उड़ती हैं इधर-उधर और मैं पूछता हूँ, 
मैं क्यों नहीं कभी बंद कर पाता उन्हें पढ़ना ?

गली के नुक्कड़ के पास, काफीघर के दरवाजे पर 
एक फकीर की शक्ल में कविता आई और चली गई 
चीकट चिथड़े की तरह के एक दिन में. 
                    :: :: :: 

संगीत 

कुछ नहीं, कुछ भी नहीं -- मंद-मंद हवा बजाती है पेड़ों के गिटार.
कुछ नहीं, कुछ भी नहीं. 
खालीपन. कोई गुंजाइश नहीं शब्दों के पास इसे भरने की. 

और मैं ख्वाब देखता हूँ, 
और ख्वाब कुछ नहीं बस हकीकत है अपने बचपन में. 
तो फिर खुद से पूछो, मुझसे नहीं -- 
कोई अवरोध नहीं क्षितिज पर सिवाय तुम्हारे दिमाग के भीतर. 
मगर यह तो लगभग निश्चित है 
कि जादुई ढंग से पैदा हो जाती है एक कविता 
जैसे कोई मकान लटकता हुआ आसमान से.

एक परदेशी रहता है इस मकान में और उसका नाम अर्थ है. 
                    :: :: :: 

(अनुवाद : मनोज पटेल)
अली अहमद सईद असबार अडोनिस, Ali Ahmad Said Esber Adonis poems in Hindi Translation 

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