Thursday, July 7, 2011

पेड़ : तीन कविताएँ


अडोनिस ने 'पेड़' शीर्षक से कई कविताएँ लिखी हैं. आज उन्हीं कविताओं में से तीन कविताएँ... 











पेड़ 

उसे नहीं पता कि कैसे संवारा जाए तलवारों को 
                    क्षत-विक्षत अंगों से.
उसे नहीं पता कि कैसे बनाया जाए 
                    अपने दांतों को चमकता-दमकता. 
वे खोपड़ियों और खून की नदी से आए हैं उसके पीछे 
और फांद चुके हैं नीची दीवार 
और वह दरवाज़े के पीछे है 
                    (वह सपना देखता है कि दरवाज़े के पीछे वह अभी बच्चा ही है) 
भूखे शख्स की आखिरी किताब पढ़ते हुए. 
                    :: :: :: 


पेड़ 

कभी भाला लेकर नहीं चला मैं, न ही कभी 
काटा कोई सर,
गर्मियों और सर्दियों में 
मैं गौरैया की तरह चला जाता हूँ उड़कर 
भूख की नदी की ओर, पानी से बनी इसकी जादुई सरहदों की ओर. 

मेरी हुकूमत बनाती है पानी का रूप. 
मैं राज करता हूँ गैरहाजिरी पर. 
राज करता हूँ ताज्जुब और तकलीफ में, 
साफ़ मौसम और तूफानों में. 

कोई फ़र्क नहीं मैं नजदीक आऊँ या दूर चला जाऊं. 
मेरी हुकूमत है रोशनी में 
और धरती है मेरे घर का दरवाज़ा. 
                    :: :: :: 

पेड़ 

मैनें तुमसे कहा : जागो! मैनें पानी देखा 
जैसे कोई बच्चा चरा रहा हो हवा और पत्थर.
और मैनें कहा : पानी और फल के नीचे 
गेहूँ के दानों की सतह के नीचे   
एक फुसफुसाहट है जो ख्वाब देखती है 
जख्म के लिए एक गीत होने का 
भूख और रुलाई की हुकूमत में... 

जागो, मैं पुकार रहा हूँ तुम्हें. क्या तुम पहचान नहीं रहे आवाज़ ?
मैं तुम्हारा भाई अल-खिद्र हूँ. 
काठी कस लो मौत की घोड़ी की, 
वक़्त के दरवाज़े को उखाड़ दो उसकी चौखट से. 
                    :: :: :: 
अल-खिद्र : पैगम्बर और पीरों का गाइड, विशेष रूप से सूफियों का पूज्य  

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Ali Ahmad Said Esber Adonis, अली अहमद सईद असबार अडुनिस 

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