'शुरुआतें' श्रृंखला से अडोनिस की दो और कविताएँ...
रास्ते की शुरूआत
रात कागज़ थी और हम थे
रोशनाई :
-- "तुमने एक आदमी का चेहरा बनाया या फिर एक पत्थर?"
-- "तुमने एक औरत का चेहरा बनाया या फिर एक पत्थर?"
मैनें जवाब नहीं दिया
न ही उसने जवाब दिया. हमारे प्यार ने
कहीं पैठ नहीं है हमारी खामोशी की
हमारे प्यार की तरह, उस तक भी कोई रास्ता नहीं जाता.
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हवा की शुरूआत
"रात की देंह"
वह बोली
"एक मकान है
जख्मों का और उनके समय का..."
हमने शुरूआत की जैसे सुबह शुरू होती है. हम छाया की तरफ गए और हमारे ख्वाब उलझ गए.
सूरज खिलाता है कलियों को : "झाग आएगा
समुन्दर जैसे कपड़े पहनकर" --
हमने कोशिश की
अपनी दूरियां नापने की. हम उठे
और हवा को देखा हमारे निशान मिटाते हुए.
फुसफुसाते हुए
हमने याद किया बीते दिनों को
और जुदा हो गए.
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अली अहमद सईद अस्बार अदोनिस Ali Ahmad Said Esber Adunis
Very Soft poetry with a beautiful picture.... U always bring a very nice collection of poems for the people like us, who are not very much into literature but love to read.
ReplyDeleteबिना किसी प्रतिफल के लगातार अनुवाद जारी रखना आसान काम नहीं है.आपने तो जैसे निष्काम कर्म के सिद्धांत को जैसे अपने जीवन में समाहित कर लिया है.सलाम आपके प्रयास को. .
ReplyDeleteraat kagaz the aur ham the roshnai... bemisal panktiya hain..
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