'सौ प्रेम पत्र' से निज़ार कब्बानी की कुछ और कविताएँ...
निज़ार कब्बानी की कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैनें फैसला किया
आजादी की सायकिल पर
दुनिया भर की सैर करने का
उसी गैरकानूनी तरीके से
जैसे सैर करती है हवा.
अगर मुझसे पूछी जाती है मेरी रिहाइश
मैं बता देता हूँ
उन सारे फुटपाथों का पता
जिन्हें चुना है मैनें अपना स्थायी ठिकाना.
अगर मुझसे मांगे जाते हैं मेरे कागज़ात,
मैं दिखा देता हूँ उन्हें तुम्हारी आँखें.
प्रिय,
मुझे जाने दिया जाता है
क्यूंकि उन्हें मालूम है कि
तुम्हारी आँखों की बस्ती में सैर का
हक़ है सारे मर्दों को.
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तुम्हारे साथ ही ख़त्म हो गई
छोटी-छोटी चीजों की मेरी बादशाहत
अब अकेले मेरे पास नहीं होती कोई चीज,
अकेले मैं नहीं सजा पाता फूल,
न ही पढ़ पाता हूँ किताबें
तुम आ जाती हो
मेरी आँखों और किताब के बीच,
मेरे मुंह और मेरी आवाज़ के बीच,
मेरे सर और तकिए के बीच,
मेरी अँगुलियों और सिगरेट के बीच.
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सच है
मुझे शिकायत नहीं है
अपने दिल में तुम्हारे रहने से,
अपने हाथों की हरकत में तुम्हारी दखलंदाजी से,
अपनी आँखों के झपकने,
और अपने ख्यालों की रफ़्तार से,
पेड़ शिकायत नहीं करते
इतनी सारी चिड़ियों का बसेरा होने पर,
प्याले शिकायत नहीं करते
कि उन्होंने थाम रखी है इतनी शराब.
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वाह एक ताज़ा हवा के छोंके सी हैं तीनों रचनाएं. प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteछोंके=झोंके
ReplyDeletekhoobsoorat... prem ka alag andaaz hai Nizar ka ..
ReplyDeleteफिर अभिभूत किया कब्बानी के कविताओं ने ! आभार मनोज जी !
ReplyDeletesundar
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteप्रेम की बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्तियां
ReplyDelete''...छोटी छोटी चीजों की मेरी बादशाहत''.....!!!
ReplyDeleteपेड़ शिकायत नहीं करते .....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...तीनों ही कवितायें
बेहद खूबसूरत रचना.... मनोज जी ! कितनी सुंदर कविताएँ चुनकर लाते हैं आप... आभार ।
ReplyDelete.....awaak kar dene vaali kavitaayen......
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