निजार कब्बानी के 'सौ प्रेम पत्र' से एक और कविता...
निज़ार कब्बानी की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
मगर खेल नहीं खेलता
प्यार का.
तुमसे लड़ता नहीं
जैसे बच्चे लड़ते हैं
समुन्दर की मछलियों के लिए,
लाल मछली तुम्हारी,
नीली वाली मेरी.
ले लो सारी लाल और नीली मछलियाँ
मगर बनी रहो मेरी महबूबा.
पूरा समुन्दर ले लो,
जहाज़,
और मुसाफिर,
मगर बनी रहो मेरी महबूबा.
मेरी सारी चीजें ले लो
सिर्फ एक कवि हूँ मैं
मेरी सारी दौलत है
अपनी कापी
और तुम्हारी खूबसूरत आँखों में.
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ओह ! बेहद सुंदर !!!
ReplyDeleteसचमुच प्रेम लेने का नहीं अपितु देने का नाम है.प्रेम में किसी के लिए आत्मोत्सर्ग में जो संतुष्टि मिलती है,वह किसी और से कुछ पाकर भी नहीं मिलती.
ReplyDeleteadbhut prem ki abhivyakti...sundar kavita.
ReplyDelete'मेरी सारी दौलत है
ReplyDeleteमेरी कापी और
तुम्हारी खूबसूरत आँखों में '!
बहुत सुन्दर प्यार में भीगी हुई कविता !
आभार मनोज जी !
बहुत सुंदर ....
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