अडोनिस की 'शुरुआतें' श्रृंखला से दो कविताएँ...
किताब की शुरूआत
एक कर्ता या एक सर्वनाम --
और समय है विशेषण. क्या? क्या तुमने कुछ कहा,
या कोई चीज
तुम्हारे नाम से बोल रही है?
क्या उद्धृत किया जाए? रूपक एक परदा है
और परदा एक नुकसान --
यह तुम्हारी ज़िंदगी है कब्जाई जा रही शब्दों द्वारा.
शब्दकोष अपने राज नहीं बताते. शब्द
कोई जवाब नहीं देते, वे सवाल करते जाते हैं -- नुकसान
और रूपक एक परिवर्तन
एक आग से दूसरी आग को
एक मौत से दूसरी मौत को.
तुम वह उद्धरण हो जिसका अर्थ खोला जा रहा है,
जन्म ले रहे हो हर व्याख्या में :
कोई तरीका नहीं
तुम्हारे चेहरे को बयान करने का.
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प्रेम की शुरूआत
आशिक अपने जख्म पढ़ते हैं, और हम उन्हें लिख देते हैं
किसी और युग की तरह, और फिर तस्वीर बनाते हैं
अपने समय की :
मेरा चेहरा शाम है, तुम्हारी पलकें सुबह.
हमारे कदम खून हैं और चाहत
उन्हीं की तरह.
हर बार जब वे जगे, उन्होंने हमें नोच दिया
और फेंक दिया अपना प्रेम और फेंक दिया हमें --
जैसे हवा में एक फूल.
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(अनुवाद : मनोज पटेल)
आप भाग्यशाली हैं मनोज जी ,जो इतनी अच्छी कविताओं की सोहबत में रहते हैं !
ReplyDeleteफिर एक बार सुन्दर कविताओं का सुन्दर अनुवाद !