येहूदा आमिखाई की कविता...
(अनुवाद : मनोज पटेल)
1
धीरे से बोलती है बारिश :
अब सो सकते हो तुम.
मेरे बिस्तर के बगल -- एक अखबार के फड़फड़ाते पंख.
कोई और फ़रिश्ता नहीं.
मैं जल्दी जाग जाऊंगा और कुछ रिश्वत दे दूंगा शुरू होने वाले दिन को,
ताकि वह अच्छा रहे हमारे लिए.
2
तुम्हारी हँसी अंगूर जैसी है :
ढेर सारी, हरी और गोल.
तुम्हारी देंह भरी हुई है छिपकलियों से;
वे सब प्यार करती हैं सूरज से.
फूल उगते हैं खेतों में, और मेरे गालों पर घास.
कुछ भी हो सकता है.
3
तुम हमेशा रहती हो
मेरी आँखों में.
हमारे साथ-साथ बिताए गए हर दिन के लिए
डेविड का बेटा कोहेलेथ मिटा देता है एक पंक्ति अपनी किताब से.
हम बचाव के सबूत हैं इस भयानक मुक़दमे में.
हम बरी करा देंगे उन सभी को !
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