Thursday, January 19, 2012

निकानोर पार्रा : सम्पूर्ण या उसका अंश

निकानोर पार्रा की एक कविता... 

 

निकानोर पार्रा की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

खेलों को मैनें त्यागा धर्म के लिए 
(हर इतवार को मैं प्रार्थना सभा में जाता था)
धर्म को छोड़ा कला के लिए 
और कला को गणितीय विज्ञान की खातिर 

जब तक कि आखिरकार ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो गई 

और अब मैं महज एक दर्शक हूँ, जिसकी  
सम्पूर्ण या उसके किसी अंश में श्रद्धा नहीं रही.  
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Tamsa Marg, Akbarpur, Ambedkarnagar, Mobile : 09838599333 

5 comments:

  1. मैं सहमत हूं और खुद की मनःस्थिति को इस कथ्य के करीब पाती हूं।

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  2. बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen " पर भी पधारने का कष्ट करें.

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  3. उत्तम कथ्य ....यह कविता नहीं लेखिक के एकांत का प्रवेश द्वार है /

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  4. एक नास्तिक आदमी का आस्थापूर्ण वक्तव्य.

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  5. नीरस से सरस या सरस से नीरस की यात्रा!

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