Wednesday, May 2, 2012

नाजिम हिकमत : वेरा का जागना

नाजिम हिकमत की एक और बहुत अच्छी कविता 'वेरा का जागना'.  वेरा तुल्यकोवा उनकी पांचवी पत्नी का नाम था.  

 
वेरा का जागना : नाजिम हिकमत 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

कुर्सियां सोई हुई हैं अपने पायों पर 
           मेज की ही तरह 
गलीचा लंबा पड़ा है पीठ के बल 
          अपने बेलबूटों को थामे हुए 
सो रहा है आईना 
कसकर बंद हैं खिड़कियों की आँखें 
बाहर पैर लटकाए पसरी हुई है बाल्कनी 
सामने की छत पर सोई पड़ी हैं चिमनियाँ 
          अकेशिया के फूल भी सोए हुए हैं फुटपाथ पर 
सो रहा है बादल 
          अपनी छाती पर एक सितारा लिए 
रोशनी सो रही है, भीतर और बाहर की 
तुम जग गई मेरी जान 
जाग गई कुर्सियां 
          और भागने लगीं एक कोने से दूसरे कोने 
                    मेज की ही तरह 
उठकर बैठ गया गलीचा 
          धीमे-धीमे खोलता हुआ अपना रंग 
भोर की झील की तरह जग गया आईना 
अपनी बड़ी-बड़ी नीली आँखें खोल दिया खिड़कियों ने 
बाल्कनी जाग गई 
          और समेट लिए हवा में लटके अपने पैर  
सामने की छत पर धुंआ निकलने लगा चिमनियों से 
अकेशिया के फूलों ने गाना शुरू कर दिया फुटपाथ पर 
जग गया बादल 
          और अपनी छाती के सितारे को उछाल दिया हमारे कमरे में 
जाग गई रोशनी, भीतर और बाहर की 
          तुम्हारे बालों को झिलमिलाते हुए 
                    वह फिसल पड़ी तुम्हारी उँगलियों से 
     और बाहों में भर लिया तुम्हारी निर्वसन कमर को, उन गोरे पांवो को तुम्हारे  
                                                                                                 मई 1960 
                                                                                                      मास्को 
                    :: :: :: 

5 comments:

  1. खूबसूरत ............... प्यार भरी आंखे ही तुम्हें देख सकती हैं !

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  2. bahut badhiya..Nazim hikmat kamaal hain..prem ko jitna unhone miss kiya hai utna hi shiddat se mehsoos kiya hai..aur abhivayakat kiya hai..inko padhta hun to Gulzar ka asar feeka padne lagta hai..aisa hona nahi chaahiye..par aisa hota hai..tulna karna nahi chaahta par tulne ho jaati hai..khud-b-khud..Manoj..hindi ka sabse achha bolg likhne ke liye dhanyavaad!!

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  3. जीवंत आँखें खुली तो सब जाग उठे... घर, द्वार, मेज़, नज़ारे... वाह!
    सुन्दर!

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  4. अच्छी रचना..बधाई

    नीरज

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  5. रात को सोते और सुबह अंगडाई लेकर जागते लोगों और प्रकृति का सुन्दर चित्रण.

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