अफजाल अहमद सैयद की एक और कविता...
समुन्दर ने तुमसे क्या कहा : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
"समुन्दर ने तुमसे क्या कहा?"
इस्तिग़ासा के वकील ने तुमसे पूछा
और तुम रोने लगीं
"जनाबे आली यह सवाल ग़ैर ज़रूरी है"
सफाई के वकील ने तुम्हारे आंसू पोंछते हुए कहा
अदालत ने तुम्हारे वकील का एतराज़
और तुम्हारे आंसू
मुस्तरद कर दिए
आंसू रिकार्ड रूम में चले गए
और तुम अपनी कोठरी में
यह शहर सतहे समुन्दर से नीचे आबाद है
यह अदालतें शहर की सतह से भी नीचे
और ज़ेरे समाअत मुल्ज़िमों की कोठरियां
उनसे भी नीचे
कोठरी में कोई तुम्हें रेशम की एक डोर दे जाता है
तुम हर पेशी तक एक शाल बुन लेती हो
और अदालत बर्खास्त हो जाने के बाद
उसे उधेड़ देती हो
"यह डोर तुम्हें कहाँ से मिली?"
सुप्रिटेंडेंट आफ प्रिजन्स तुमसे पूछता है
"यह डोर एक शख्स लाया था
अपने पांवों में बांधकर
एक बला को ख़त्म करने के लिए
एक पुरपेच रास्ते से गुजरने के लिए"
"वह आदमी अब कहाँ है?"
ठन्डे पानी में तुम्हें ग़ोता देकर पूछा जाता है
"वह आदमी रास्ता खो बैठा"
समुन्दर ने तुमसे यही कहा था
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मुस्तरद : खारिज करना
ज़ेरे समाअत : सुनवाई के अधीन, अंडर ट्रायल
पुरपेच : टेढ़ा-मेढ़ा
प्रेरक
ReplyDeletekaamal ki kavita..thanx share karne k liye...kammal kamaal kamaal
ReplyDeleteसमंदर आंसू दे गया था.
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