डाना ज्वायूह (जन्म: २४ दिसंबर १९५०) अमेरिकी लेखक, आलोचक और कवि हैं. पूर्णकालिक लेखक बनने के लिए उन्होंने एक कम्पनी के ऊंचे पद से इस्तीफा दे दिया था. जनवरी २००३ से जनवरी २००९ तक वे नेशनल एन्डाउमेंट फार आर्ट्स के चेयरमैन भी रह चुके हैं. कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके डाना के तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हैं.
हमें याद करने का शुक्रिया : डाना ज्वायूह
(अनुवाद : मनोज पटेल)
खराब हो रहे हैं गलती से यहाँ भेजे गए फूल,
एक ऐसे नाम की तरफ से जिसे कोई नहीं जानता
हमें क्या करना चाहिए?
हमारी पड़ोसन कहती है कि वे उसके लिए नहीं हैं,
और किसी का जन्मदिन भी नहीं नजदीक.
हमें किसी को शुक्रिया कहना चाहिए इस चूक के लिए.
हममें से किसी का चक्कर तो नहीं चल रहा किसी से?
पहले तो हम हँसे और फिर ताज्जुब करने लगे.
सबसे पहले मुरझाने वाला था आइरिस
अपनी प्यारी और देर तक टिकने वाली
सुगंध में ढंका. गुलाब
एक-एक कर गिराते गए पंखुड़ियां,
और अब सूख रही हैं फर्न भी.
किसी अंत्येष्टि सा महक रहा है कमरा,
मगर वे पड़े हैं वहां, घर जैसा महसूस करते,
किसी छोटे-मोटे अपराध का आरोप सा लगाते हमपर,
जैसे कोई भूला-बिसरा प्यार, और हम फेंक नहीं सकते
कोई तोहफा भी, जो कभी हमारे पास रहा ही नहीं.
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वाह...अद्भुत रचना...बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteनीरज
bahut hi shandar ,
ReplyDeleteaap bahut accha kaam kr rehe hai ihne mahan rachnakaro ki rachnaye hum tak paucha rehe hai
http://blondmedia.blogspot.in/
सचमुच शानदार भाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर .............अद्भुत कविता ! आभार मनोज जी !
ReplyDeleteअंत्येष्ठी सा महक रहा कमरा !
ReplyDeleteतोहफे के बहाने अकेलेपन का चित्रण करती मार्मिक कविता.
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