मलयाली कवि कुमारन असन की स्मृति में दिए जाने वाले असन विश्व पुरस्कार २०१२ के लिए प्यूर्टो रिको के प्रसिद्द कवि जैक एग्यूरो को चुना गया है. प्रस्तुत है जैक एग्यूरो की एक कविता...
सानेट, जो मूलतः बेरोजगारी की कतार में मुझसे आगे खड़े ऍफ़ रोड्रिगुएज़ की बातों की तरह है : जैक एग्यूरो
(अनुवाद : मनोज पटेल)
यह हमेशा होता है मेरे साथ-- कारोबार
तेज होता है और मंदा मगर मैं नींद नाम के
तेज गति के करतब में लिपटे यो यो की तरह हूँ
जिस तरह मैं कसकर खड़ा हूँ इस कतार में अभी.
शायद मैं भी एक लट्टू ही हूँ: वे भी सोते हैं
खड़े-खड़े, तेजी से नाचते हुए अपनी जगह पर.
काश कि बाहर निकलकर सुन सकता
उस तरह का संगीत जो मुझे रचना ही चाहिए.
मगर इसी जगह आकर सरकार खेल खेलती है अपना.
गद्दीदार कुर्सियों पर बैठे कारिंदे कतारों के एक कठघरे द्वारा
तुम्हारे इफ़रात वक़्त को खड़ा कर देते हैं तुम्हारे खिलाफ
तुम्हारी डोर दोनों है, तुम्हारा पट्टा भी और तुम्हारा कोड़ा भी.
जितना तेज नाचते हो, उतना ही स्थिर दिखते हो तुम.
इसमें कुछ सीखने की बात है, मगर क्या?
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bahut hi adbhud kavita
ReplyDeletethanks yaha post kerne ke liye
मगर क्या?
ReplyDeleteयह अनुत्तरित प्रश्न ही कविता की जान बन गयी है!
बेहतरीन कविता,
मैं भी लट्टू ही हूँ.......
और तेज़ करो रक्स
ReplyDeleteजब तक नाचता हुआ लट्टू
नाचता हुआ न लगने लगे ,
एक उचटती हुई निगाह उस पर
डालकर बाहर निकल जाओ
कुछ देर
अपनी पहचान के साथ बहो
जो एक नदी की तरह है
उद्गम की ओर बहती !
shandar-Rakesh Singh
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteनाचने और स्थिर दिखने के तालमेल की लट्टू से तुलना अद्भुत है.
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