ऊलाव हाउगे की एक और कविता...
बटखरे : ऊलाव एच हाउगे
(अनुवाद : मनोज पटेल)
क्या तुम निकल गए हो अन्तरिक्ष-यात्रा पर
या तुम
उन बटखरों में से एक हो
जो ठहरे रहते हैं जमीन पर और कहते हैं
वो कभी नहीं उठेंगे.
बटखरों के साथ कुछ नहीं करना होता.
वे पड़े रहते हैं वहीं.
तुम तौल सकते हो उन्हें, कोई
फर्क नहीं पड़ता उनको.
मगर वे पड़े रहेंगे वहीं
वैसे ही कड़ियल, वैसे ही सर्द.
वही हैं, जिन्हें पता होता है
कितनी वजनी हैं चीजें.
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वही हैं, जिन्हें पता होता है
ReplyDeleteकितनी वजनी हैं चीजें.
वाह!
ihne batte bhi kahte hain.yahan ve adiyal mrtitpray mansikta ke prateek hain.
ReplyDeleteवाह.......... कहाँ कहाँ से ढूंढ कर लाते हैं आप भी ! कमाल है ! ये बटखरे न हों तो चीजों के वजन का पता ही न चले ! सच !
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता
ReplyDeletebhai super rachnao ka sngrah hai ye
ReplyDeletemaza aa jate hai padne se
vahi hain jinhe pata hota kitni vajni hain chijen..bahut shandar.
ReplyDeleteadbhut kavita.
ReplyDeletegud and nice one
ReplyDeleteसुंदर और वजनी कविता.......आभार....!!
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