Wednesday, May 16, 2012

येहूदा आमिखाई की कविता

येहूदा आमिखाई की 'जियान के गीत' श्रृंखला से एक कविता...   

 
येहूदा आमिखाई की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

एक ऎसी जगह है येरुशलम जहां हर किसी को याद है 
कि वह भूल गया है कुछ 
मगर यह नहीं याद कि क्या. 

और याद करने की खातिर 
मैं अपने चेहरे के ऊपर पहन लेता हूँ अपने पिता का चेहरा. 

यह वो शहर है जहां भर जाते हैं मेरे सपनों के पीपे  
किसी गोताखार के आक्सीजन टैंक की तरह. 

इसकी पवित्रता 
कभी-कभी बदल जाती है प्यार में. 

और सवाल जो पूछे जाते हैं इन पहाड़ों में 
वही हैं, जो पूछे जाते रहे हैं हमेशा से: "क्या तुमने 
मेरी भेड़ देखी?" "क्या तुमने 
मेरा गड़रिया देखा?" 

और मेरे घर का दरवाजा खुला रहता है 
किसी कब्र की तरह 
जहां पुनर्जीवित किया गया था कोई. 
                    :: :: :: 

2 comments:

  1. 'जहां हर किसी को याद है
    कि वह भूल गया है कुछ'
    वाह!

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  2. अनबीते अतीत की स्मृतियों को जिन्दा रखने से जुडी उदासीभरी कविता.

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