बिली कालिन्स की एक और कविता...
भागमभाग : बिली कालिन्स
(अनुवाद : मनोज पटेल)
सुबह-सुबह काम पर जाने की भागमभाग में
हार्न बजाता तेज रफ़्तार में निकलता हूँ कब्रिस्तान के बगल से
जहां अगल-बगल दफ़न हैं मेरे माता-पिता
ग्रेनाईट की एक चिकनी पटिया के नीचे.
और फिर पूरे दिन लगता है जैसे उठ रहे हों वे
नापसंदगी का इजहार करने वाली
उन्हीं निगाहों से मुझे देखने के लिए,
जबकि माँ शान्ति से उन्हें समझाती हैं फिर से लेट जाने को.
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इस भागमभाग में मटा-पिता का भी खयाल रखने की फुर्सत किसे है ! यह जानते हुए कि पिता को यह पसंद न आता वह रुक नहीं पता ! सामान्य विषय पर अच्छी कविता ! सुंदर अनुवाद !
ReplyDeleteकितना सहज और सत्य...
ReplyDeleteमाता पिता की प्रतिक्रियायों को भली प्रकार पढ़ा कवि ने!
आज के भागम-भाग परिवेश के लिए सुंदर कविता और अनुवाद,साथ ही माँ का वही प्यार....आभार.....!!
ReplyDeleteआज के भागम-भाग परिवेश के लिए सुंदर कविता और अनुवाद,साथ ही माँ का वही प्यार....आभार.....!!
ReplyDeleteअच्छा अनुवाद. 'पढ़ते-पढ़ते' पर आना सुखद है.
ReplyDeleteकब्र में सोये और बेचैन माता पिता को दिन प्रतिदिन स्मरण करती कविता.
ReplyDeleteभागमभाग आज के दौर की त्रासदी है एक शे'र याद आ रहा है '' मैं हूँ मशीनी दौर का मशरूफ़ आदमी , ख़ुद से भी बात करने की फुर्सत नहीं मुझे ''॰
ReplyDeleteभागम भाग आज के दौर की त्रासदी है , एक शे'र याद आ रहा है '' मैं हूँ मशीनी दौर का मशरूफ़ आदमी , ख़ुद से भी बात करने की फुर्सत नहीं मुझे ''. अच्छी कविता है ।
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