Wednesday, May 9, 2012

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : जिससे मोहब्बत हो

अफजाल अहमद सैयद की कविता...  

 
जिससे मोहब्बत हो : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 

जिससे मोहब्बत हो 
उसे निकाल ले जाना चाहिए 
आख़िरी कश्ती पर 
एक मादूम होते हुए शहर से 
बाहर 

उसके साथ 
पार करना चाहिए 
गिराए जाने की सज़ा पाया हुआ 
एक पुल 

उसे हमेशा मुख़्तसर नाम से पुकारना चाहिए 

उसे ले जाना चाहिए 
ज़िंदा आतिशफ़सानों से भरे 
एक जज़ीरे पर 

उसका पहला बोसा 
लेना चाहिए 
नमक की कान में बनी 
एक अज़ीयत देने की कोठरी के 
अंदर 

जिससे मोहब्बत हो 
उसके साथ टाइप करनी चाहिए 
दुनिया की तमाम नाइंसाफ़ियों के खिलाफ़  
एक अर्ज़दाश्त 
जिसके सफ़हात 
उड़ा देने चाहिए 
सुबह 
होटल के कमरे की खिड़की से 
स्वीमिंग पूल की तरफ़ 
               :: :: :: 

मादूम  :  नष्ट, गायब 
आतिशफ़सान   :  ज्वालामुखी 
जज़ीरा  :  द्वीप, टापू 
बोसा  :  चुम्बन 
कान  : खदान 
अज़ीयत  :  यातना, कष्ट 
अर्ज़दाश्त  :  प्रार्थनापत्र 
सफ़हात  :  पन्ने 

6 comments:

  1. बहुत असरदार कविता .................जिससे मोहब्बत हो उसे बताना चाहिए जमाने की खतरनाक सच्चाई ,उसे बचना भी चाहिए और मुसीबतों का सामना करना भी सीखना चाहिए ! इस कविता के लिए आपका आभार मनोज जी !

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  2. बहुत खूब कहा है..वाह

    नीरज

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  3. Bahut badhiya hai Manoj Bhai!

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