जैक एग्यूरो की एक और कविता...
वितरण के लिए भजन : जैक एग्यूरो
(अनुवाद : मनोज पटेल)
प्रभु,
एथ स्ट्रीट पर
सिक्स्थ एवेन्यू और ब्राडवे के बीच
ग्रीनविच विलेज में
इतनी दुकानें हैं जूतों की
और इतने जूते भरे हैं उनमें
कि ताज्जुब होने लगता है मुझे
क्यों हैं इस धरती पर
बिना जूते वाले लोग.
प्रभु,
आपको बर्खास्त करना पड़ेगा
वितरण के लिए जिम्मेदार फ़रिश्ते को.
:: :: ::
khuda ke taqseem ke nizam par hamesha tajjub hi hota hai
ReplyDeleteकमाल है कविता मनोज जी ............... वितरण प्रणाली पर कब्जा जमाये इन राक्षसी 'फरिश्तों' को बेदखल करना ही होगा !
ReplyDeleteऔर प्रभु अब कोई और नहीं सिर्फ 'जनता' है !
आभार इस कविता के लिए !
kitna sunder..kitna sookshm aur kitna vishaal bhaav..aisi baatein seedha dil pe vaar karti hain..waah..
ReplyDeleteतू धुंध सा छाया है
ReplyDeleteजगत की चेतना पर
तू हटे धुंध छंटे
तो कोई रास्ता दिखे
ओ ईश्वर !
-हरभगवान चावला
कुम्भ में छूटी औरतें )
तू धुंध सा छाया है
ReplyDeleteजगत की चेतना पर
तू हटे धुंध छंटे
तो कोई रास्ता दिखे
ओ ईश्वर !
-हरभगवान चावला
कुम्भ में छूटी औरतें )
Or kb hoga sahi vitran.
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