जैक एग्यूरो की एक और प्रार्थना...
विश्व रेस्तरां के लिए प्रार्थना : जैक एग्यूरो
(अनुवाद : मनोज पटेल)
प्रभु,
बड़ा अजीबोगरीब मेन्यू है
विश्व रेस्तरां वाले फ़रिश्ते के पास...
एक पन्ने पर कोई खाना नहीं,
एक पन्ने पर आधी खुराक,
और एक पन्ने पर सिर्फ रासायनिक जहर.
प्रभु, मैं जानता हूँ कि गंभीर आरोप हैं ये,
पर अपने मुंह में मुनाफ़ा ठूंसते जाने ने
बर्बाद कर डाली हैं उसकी स्वाद ग्रंथियां.
भगवन, रद्द कर दें उसकी
खाना-खजाना पत्रिका की ग्राहकी.
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बेहतरीन!
ReplyDeletemook karti kavita..
ReplyDeleteबेहद मार्मिक कविता.भूख और पैसे की बेतहाशा बर्बादी को एक ही कविता में समेटने का दुसाध्य प्रयास किया गया है. दुनिया से यह असमानता शायद कभी समाप्त नहीं हो सकती है.
ReplyDeleteबेहतरीन..बेहतरीन..बेहतरीन!
ReplyDeleteकमाल की अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली कथ्य..
ReplyDeleteबहुत खूब!! बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteसीधे प्रभु से संवाद करती मार्मिक कविता...!
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