राबर्तो हुआरोज़ की एक और कविता...
राबर्तो हुआरोज़ की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
नाम चीजों को निर्दिष्ट नहीं करते:
वे उन्हें ढँक लेते हैं, गला घोंट देते हैं उनका.
मगर चीजें तोड़ देती हैं
अपने शब्दावरण
और फिर से खड़ी हो जाती हैं वहां, नग्न,
नाम से कुछ अधिक के इंतज़ार में.
सिर्फ किसी चीज की अपनी आवाज़ ही
बता सकती है उसके बारे में,
आवाज़, जिसका पता न तो उस चीज को होता है न ही हमें,
इस तटस्थता में, जो शायद ही कभी बोलती है,
यह विपुल मौन जहां दम तोडती हैं लहरें.
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चीजों और लोगों के साथ हम बिना शब्दों का सहारा लिए भी सम्प्रेषण कर सकते हैं.उनकी उपस्थिति ही पर्याप्त है.
ReplyDelete'नाम से कुछ अधिक के इंतज़ार में.'
ReplyDeleteवाह!
नाम ऊपर से थोपा हुआ है...वस्तु अपना परिचय खुद देती है, सुंदर भाव!
ReplyDeleteबेहतरीन।
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