Tuesday, May 22, 2012

इतवार का अखबार

डाना ज्वायूह की एक और कविता...  

 
इतवार का अखबार : डाना ज्वायूह 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

इतवार के अखबार में कुछ तलाशते हुए 
संयोगवश पलट दिया मैंने स्थानीय शादियों वाला पन्ना, 
फिर भी गौर नहीं किया था तस्वीर पर 
जब तक तुम्हारा नाम न दिख गया सुर्ख़ियों के बीच. 

और तुम थी वहां, लगभग वैसी की वैसी दिखती, 
लम्बे बाल अभी तक, गोकि अब अर्से से चलन में नहीं रहे ऐसे बाल, 
अब भी वही रूखा गंभीर चेहरा बनाए 
जिसे मुस्कराहट कहा करती थी तुम. 

मुझे लगा जैसे आमने-सामने बैठे हों हम. 
पेट में मरोड़ होने लगी मेरे, पूरी खबर पढ़ गया मैं. 
वह बहुत कुछ बताता था दोनों परिवारों के बारे में, 
मगर तुम्हारे बारे में बहुत कम.  

आखिरकार पूरा पढ़ने के बाद अखबार नीचे फेंक दिया मैंने, 
ईर्ष्या का मारा, जलता हुआ मेरा दिमाग, 
इस शख्स से नफरत करता हुआ, इस अजनबी से जिससे प्रेम करती थी तुम, 
नफरत करता हुआ इस छपे हुए नाम से.  

फिर भी उसे काटकर निकाल लिया मैंने 
किसी किताब में रख देने के लिए, ऎसी किसी चीज की तरह 
जिसे फिर इस्तेमाल करना हो मुझे, 
रद्दी का एक टुकड़ा, मैं जानता था कि दुबारा नहीं पढ़ूंगा 
मगर सह नहीं सकता था खोना भी उसे. 
                    :: :: :: 

5 comments:

  1. gahan ...
    man ki dasha.. sundar shab diye ...
    shubhkamnayen ...

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  2. बहुत सुंदर.......................

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  3. वाह क्या बात है ... एहसास या कोई पल .. कौन खोना चाहता है ...
    लाजवाब रचना ...

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  4. यादों की रद्दी को हम सँभालते रहते हैं.भूलना चाहते हुए भी वे अक्सर दिमाग में कौंध जाती हैं.

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