Tuesday, May 1, 2012

बिली कालिन्स : भागमभाग

बिली कालिन्स की एक और कविता...  

 
भागमभाग : बिली कालिन्स 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

सुबह-सुबह काम पर जाने की भागमभाग में 
हार्न बजाता तेज रफ़्तार में निकलता हूँ कब्रिस्तान के बगल से 
जहां अगल-बगल दफ़न हैं मेरे माता-पिता 
ग्रेनाईट की एक चिकनी पटिया के नीचे. 

और फिर पूरे दिन लगता है जैसे उठ रहे हों वे 
नापसंदगी का इजहार करने वाली 
उन्हीं निगाहों से मुझे देखने के लिए,  
जबकि माँ शान्ति से उन्हें समझाती हैं फिर से लेट जाने को.  
                    :: :: :: 

8 comments:

  1. इस भागमभाग में मटा-पिता का भी खयाल रखने की फुर्सत किसे है ! यह जानते हुए कि पिता को यह पसंद न आता वह रुक नहीं पता ! सामान्य विषय पर अच्छी कविता ! सुंदर अनुवाद !

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  2. कितना सहज और सत्य...
    माता पिता की प्रतिक्रियायों को भली प्रकार पढ़ा कवि ने!

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  3. आज के भागम-भाग परिवेश के लिए सुंदर कविता और अनुवाद,साथ ही माँ का वही प्यार....आभार.....!!

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  4. आज के भागम-भाग परिवेश के लिए सुंदर कविता और अनुवाद,साथ ही माँ का वही प्यार....आभार.....!!

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  5. अच्छा अनुवाद. 'पढ़ते-पढ़ते' पर आना सुखद है.

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  6. कब्र में सोये और बेचैन माता पिता को दिन प्रतिदिन स्मरण करती कविता.

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  7. भागमभाग आज के दौर की त्रासदी है एक शे'र याद आ रहा है '' मैं हूँ मशीनी दौर का मशरूफ़ आदमी , ख़ुद से भी बात करने की फुर्सत नहीं मुझे ''॰

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  8. भागम भाग आज के दौर की त्रासदी है , एक शे'र याद आ रहा है '' मैं हूँ मशीनी दौर का मशरूफ़ आदमी , ख़ुद से भी बात करने की फुर्सत नहीं मुझे ''. अच्छी कविता है ।

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