Thursday, June 7, 2012

चार्ल्स सिमिक : एक गुमशुदा चीज का ब्यौरा

चार्ल्स सिमिक की एक और कविता...  

 
एक गुमशुदा चीज का ब्यौरा : चार्ल्स सिमिक 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

कभी कोई नाम नहीं रहा उसका, 
न ही मुझे याद है कि वह मुझे कैसे मिली. 
खोई हुई बटन की तरह 
मैं उसे लिए रहता था अपनी जेब में 
गो कि बटन नहीं थी वह. 
डरावनी फ़िल्में, 
पूरी रात खुले रहने वाले जलपानघर, 
अँधेरे बार, 
और बारिश से चिकनी हुई सड़कों पर बने 
पूलहाल. 
एक सादी और मामूली मौजूदगी थी उसकी 
जैसे कोई परछाई सपने में, 
सुई पर कोई फ़रिश्ता, 
और फिर वह गायब हो गई. 
गुजरते रहे 
बेनाम स्टेशनों के साल दर साल, 
जब किसी ने बताया मुझे कि यही है वह!
और कितना नासमझ था मैं, 
कि उतर पड़ा एक उजाड़ प्लेटफार्म पर  
जहां दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था किसी कस्बे का.     
                    :: :: :: 

3 comments:

  1. उजाड सस्टेशन मन की वीरानी को दर्शाता है और क़स्बा प्रेमिका को.

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  2. उजाड स्टेशन मन की वीरानी को दर्शाता है और क़स्बा प्रेमिका को.

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  3. किसी की तलाश में बार-बार धोखा खाते और फिर तलाश में जुट जाते आदमी की मार्मिक कहानी ! अच्छी कविता ! आभार मनोज जी !

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