पाकिस्तानी कवि अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
मुझे वो सफ़ेद फूल पसंद नहीं : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यांतरण : मनोज पटेल)
मुझे वो सफ़ेद फूल पसंद नहीं
जिन्हें तुम चूम कर सुर्ख़ न कर सको
आसमान में टूटता हुआ सितारा
या समुंदर में डूबती हुई कश्ती
मुझे किसके साथ चलना चाहिए
तुम्हारी आँखें
और तुम्हारा दिल
मुझे कुछ नहीं बताता
तुमने शहर के शोर
और मेरे दिल की ख़ामोशी को मिलाकर
अपनी मौसिक़ी क्यों बनाई
तुमने आग पर
अपना नाम लिखने की कोशिश क्यों की
जब तुम्हारी उंगलियाँ हीरे की नहीं
जब आग लग जाती है
तो पता चलता है
बारिश कितनी अजनबी है
और समुंदर कितनी दूर
और यह ख़्वाब देखना मुश्किल हो जाता है
कि बहुत दूर
हमारे घर के पास
बर्फ़ बारी हो रही होगी
मुझे वो ख़्वाब पसंद नहीं
जो करवट बदलने में टूट जाते हैं
मुझे वो बर्फ़ पसंद नहीं
जिसे हम नंगे पाँव नाचते नाचते
सुर्ख़ न कर सकें
:: :: ::
सुर्ख़ : लाल
मौसीक़ी : संगीत
"मुझे वो ख्वाब पसंद नहीं
ReplyDeleteजो करवटें बदलने में टूट जाते हैं
मुझे वो बर्फ़ पसंद नहीं
जिसे हम नंगे पांव नाचते
सुर्ख न कर सकें." एकदम नए अंदाज़ की कविता!
शनिवार 16/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteहर वह चीज़ जो तुमसे कुछ न ले सके ,तुम्हारा कुछ रख न सके मुझे पसंद नहीं ! बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता है !
ReplyDeleteसुंदर अनुवाद और प्रस्तुति के लिए आभार !
बहुत सुन्दर....................
ReplyDeleteशुक्रिया मनोज जी इस बेहतरीन रचना के लिए.
अनु
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
"मुझे वो ख्वाब पसंद नहीं
ReplyDeleteजो करवटें बदलने में टूट जाते हैं"
सुन्दर!
बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर रचना। हम तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद मनोज पटेल जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteaha..umda...manoj...saadhuvaad aur dhanyavaad..
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
मुझे वो ख्वाब पसंद नहीं जो करवट बदलते टूट जाते हैं....
ReplyDeleteबेहद खूब !!
सफ़ेद फूलों और बर्फ को सुर्ख कर देने की कल्पना घोर निराशा में उम्मीद की किरण जगाती है.
ReplyDeleteवाह वाह मनोज जी बहुत उम्दा कविता.......बहुत अच्छा लगा....!!
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