Friday, June 15, 2012

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की कविता

पाकिस्तानी कवि अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   

 
मुझे वो सफ़ेद फूल पसंद नहीं : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यांतरण : मनोज पटेल) 

मुझे वो सफ़ेद फूल पसंद नहीं 
जिन्हें तुम चूम कर सुर्ख़ न कर सको 

आसमान में टूटता हुआ सितारा 
या समुंदर में डूबती हुई कश्ती 
मुझे किसके साथ चलना चाहिए 
तुम्हारी आँखें 
और तुम्हारा दिल 
मुझे कुछ नहीं बताता 

तुमने शहर के शोर 
और मेरे दिल की ख़ामोशी को मिलाकर 
अपनी मौसिक़ी क्यों बनाई 

तुमने आग पर 
अपना नाम लिखने की कोशिश क्यों की 
जब तुम्हारी उंगलियाँ हीरे की नहीं 

जब आग लग जाती है 
तो पता चलता है 
बारिश कितनी अजनबी है 
और समुंदर कितनी दूर 
और यह ख़्वाब देखना मुश्किल हो जाता है 
कि बहुत दूर 
हमारे घर के पास 
बर्फ़ बारी हो रही होगी 

मुझे वो ख़्वाब पसंद नहीं 
जो करवट बदलने में टूट जाते हैं 

मुझे वो बर्फ़ पसंद नहीं 
जिसे हम नंगे पाँव नाचते नाचते 
सुर्ख़ न कर सकें 
            :: :: :: 

सुर्ख़ : लाल 
मौसीक़ी : संगीत 

13 comments:

  1. "मुझे वो ख्वाब पसंद नहीं
    जो करवटें बदलने में टूट जाते हैं
    मुझे वो बर्फ़ पसंद नहीं
    जिसे हम नंगे पांव नाचते
    सुर्ख न कर सकें." एकदम नए अंदाज़ की कविता!

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  2. शनिवार 16/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!

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  3. हर वह चीज़ जो तुमसे कुछ न ले सके ,तुम्हारा कुछ रख न सके मुझे पसंद नहीं ! बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता है !
    सुंदर अनुवाद और प्रस्तुति के लिए आभार !

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  4. बहुत सुन्दर....................

    शुक्रिया मनोज जी इस बेहतरीन रचना के लिए.

    अनु

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना...
    :-)

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  6. ‎"मुझे वो ख्वाब पसंद नहीं
    जो करवटें बदलने में टूट जाते हैं"
    सुन्दर!

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  7. बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर रचना। हम तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद मनोज पटेल जी।

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  8. aha..umda...manoj...saadhuvaad aur dhanyavaad..

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  9. मुझे वो ख्वाब पसंद नहीं जो करवट बदलते टूट जाते हैं....
    बेहद खूब !!

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  10. सफ़ेद फूलों और बर्फ को सुर्ख कर देने की कल्पना घोर निराशा में उम्मीद की किरण जगाती है.

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  11. वाह वाह मनोज जी बहुत उम्दा कविता.......बहुत अच्छा लगा....!!

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