ऊलाव हाउगे की दो कविताएँ...
ऊलाव हाउगे की दो कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
युद्ध-काल से
एक गोली उछली मेरे फर्श पर.
मैंने तौला उसे अपने हाथ में.
वह आई थी खिड़की और
लकड़ी की दो दीवारों से होते हुए.
मैंने शक नहीं किया कि जान ले सकती थी वह.
:: :: ::
तीर और गोली
तीर आया गोली से पहले.
इसलिए मुझे पसंद है तीर.
मीलों तक जाती है गोली.
किन्तु भयानक होता है उसका धमाका.
उस समय मुस्कराता है तीर.
:: :: ::
"मैंने शक नहीं किया कि जन ले सकती थी वह "............... कभी-कभी शक करने की गुंजाइश मिल जाती है !
ReplyDeleteगोली बहुत शोर करती है और तीर मुसकुराता है ......... किसी कि जन लेते वक़्त !
अच्छी कवितायें ,अच्छा अनुवाद !
बेहतरीन.................................
ReplyDeleteगागर में सागर.....
ReplyDeleteतीर और गोली दोनों मारक हैं और उनकी मुस्कान जानलेवा है.
ReplyDelete