Monday, June 11, 2012

जैक एग्यूरो : आस्था के लिए प्रार्थना

जैक एग्यूरो की एक और कविता...   

 
अपनी आस्था के लिए प्रार्थना : जैक एग्यूरो 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

प्रभु, 
यह सच नहीं है कि 
ठंडी पड़ रही है मेरी आस्था. 
बात बस इतनी है 
लोग कह रहे हैं कि मोमबत्ती के धुंए की वजह से 
कैंसर हो गया गिरजाघर के चूहे को. 
और मुझे यह भी फ़िक्र है कि 
इतनी कमजोर होती है मोमबत्ती की रोशनी 
कि वह पहुँच नहीं पाती होगी तुम्हारे बादल तक. 

क्या मुझे एक हायड्रोजन मोमबत्ती की जरूरत है? 
क्या फरिश्तों को लेजर रोशनियाँ भाती हैं? 

भगवन, जब सोचता हूँ इस बारे में 
पाता हूँ कि इधर ऐसा कुछ ख़ास नहीं मेरे पास 
तुम्हारा शुक्रगुजार होने के लिए. 

क्या छुट्टी पर हो तुम? 
               :: :: :: 

5 comments:

  1. छुट्टी पर नहीं ,उसने इस्तीफा दे दिया है कब का ! धर्म अब कैंसर हो गया है जिसे ये ठेकेदार बाँट रहे हैं !

    बहुत ही अच्छी कविता ,मनोज जी का आभार !

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  2. वह तो कब का रण छोड़ गए! भक्तों से घबराकर, धन-दौलत सब पुजारियों के हवाले छोड़ कर. आखिरी चार पंक्तियाँ भी तो प्रकारांतर से यही कह रही हैं. अच्छी कविता पढवाने के लिए आभार, मनोज.

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  3. शुक्रगुज़ार जिन्हें होना है, वे भी नहीं हैं, क्योंकि वे "पोल" को जानते हैं.

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  4. बहुत बढ़िया मनोज भाई. कौनसा कवि इश्वर से संवाद करना टाल पाया है...? शुक्रिया इसे हम तक पहुंचाने के लिए.

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  5. अभावों में भगवान जरूरत पूरी करने के लिए ही याद आता है.

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