दुन्या मिखाइल की एक और कविता...
चाँद और बच्चे का रूपांतरण : दुन्या मिखाइल
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पहला चित्र
इमारत के पीछे
छिपे चाँद को देखने के लिए
बच्चे ने ऊपर उठाया अपना सर.
उनकी छायाओं ने पीछा किया एक-दूसरे का.
इमारत नहीं जान पाई
पहले कौन कूदा
बच्चे के पैरों तले
एक लाल तालाब बनाने के लिए.
दूसरा चित्र
बच्चा नदी की तरफ गया,
और जैसे एक आईने के प्रतिरूप की तरह
उतर गया बच्चा
नदी के डूबते हुए चाँद में.
तीसरा चित्र
आसमान की गिरती हुई गेंद के पीछे
बच्चा भागा समुद्र-तट पर,
जबकि रेत ने गिने
बच्चे को स्वर्ग ले जाते
चाँद के पैरों के निशान.
:: :: ::
आसमान नदी और रेत में चाँद का पीछा करने वाले और मरने वाले बच्चे के तीनों चित्र काव्यमय दुःख प्रकट करते हैं.
ReplyDeleteअद्भुत!!!
ReplyDeleteतीनों रूपक ज़बरदस्त हैं. चांद का किसी भी हाल में पीछा करना, खतरों से बेखबर हो कर, चौथा रूपक है जो मन को छू लेता है, नहीं जकड़ लेता है. प्रभावी चित्र हैं, तीनों.
ReplyDeleteविचलित करने वाले शब्दचित्र!
ReplyDeleteबहुत दुखद घटनाओ का ब्यान करती ..मन को व्यथित करती हैं
ReplyDeleteचाँद के आकर्षण में बंधे बालक मन खतरों का आभास नहीं कर पाता ! दुखान्त कवितायें !
ReplyDeleteकवि ने कुछ इस तरह इन चाँद और बच्चे के कल्पन का उपयोग किया है की बात सिर्फ चाँद और बच्चे तक सिमित नहीं रहती.
ReplyDeleteचाँद का सम्मोहन ऐसा ही होता है ....सपनों से जीवन तक और जीवन के भी आगे कही दूर ...............
ReplyDelete