Saturday, June 23, 2012

दुन्या मिखाइल : चाँद और बच्चा

दुन्या मिखाइल की एक और कविता...   

 
चाँद और बच्चे का रूपांतरण : दुन्या मिखाइल 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

पहला चित्र 

इमारत के पीछे 
छिपे चाँद को देखने के लिए 
बच्चे ने ऊपर उठाया अपना सर. 
उनकी छायाओं ने पीछा किया एक-दूसरे का. 
इमारत नहीं जान पाई 
पहले कौन कूदा 
बच्चे के पैरों तले 
एक लाल तालाब बनाने के लिए. 

दूसरा चित्र 

बच्चा नदी की तरफ गया, 
और जैसे एक आईने के प्रतिरूप की तरह 
उतर गया बच्चा 
नदी के डूबते हुए चाँद में. 

तीसरा चित्र   

आसमान की गिरती हुई गेंद के पीछे 
बच्चा भागा समुद्र-तट पर, 
जबकि रेत ने गिने 
बच्चे को स्वर्ग ले जाते 
चाँद के पैरों के निशान. 
          :: :: :: 

8 comments:

  1. आसमान नदी और रेत में चाँद का पीछा करने वाले और मरने वाले बच्चे के तीनों चित्र काव्यमय दुःख प्रकट करते हैं.

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  2. तीनों रूपक ज़बरदस्त हैं. चांद का किसी भी हाल में पीछा करना, खतरों से बेखबर हो कर, चौथा रूपक है जो मन को छू लेता है, नहीं जकड़ लेता है. प्रभावी चित्र हैं, तीनों.

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  3. विचलित करने वाले शब्दचित्र!

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  4. बहुत दुखद घटनाओ का ब्यान करती ..मन को व्यथित करती हैं

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  5. चाँद के आकर्षण में बंधे बालक मन खतरों का आभास नहीं कर पाता ! दुखान्त कवितायें !

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  6. कवि ने कुछ इस तरह इन चाँद और बच्चे के कल्पन का उपयोग किया है की बात सिर्फ चाँद और बच्चे तक सिमित नहीं रहती.

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  7. चाँद का सम्मोहन ऐसा ही होता है ....सपनों से जीवन तक और जीवन के भी आगे कही दूर ...............

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