Thursday, June 7, 2012

डब्लू. एस. मर्विन : गवाह

डब्लू एस मर्विन की एक और कविता...   

 
गवाह : डब्लू. एस. मर्विन 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मैं बताना चाहता हूँ 
कि किस तरह के होते थे जंगल. 

मुझे बोलना होगा 
एक विस्मृत भाषा में. 
          :: :: :: 

4 comments:

  1. जंगल मौन की भाषा हैं जिन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है.

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  2. यानी की हर चीज की अपनी भाषा होती है जिसमे ठीक-ठीक उसे बताया जा सकता है ...........वाह क्या बात है !बहुत गहरी बात काही है इन पंक्तियों म ! आभार मनोज जी इस नायाब तोहफे के लिए !

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  3. कितनी करुण बात....!

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