Saturday, June 9, 2012

ऊलाव हाउगे : बीज

उलाव हाउगे की एक और कविता...   

 
बीज : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

कोई जगह नहीं उगाने के लिए इसे. 
जड़ें मत निकालना, 
मत खिलाना फूल! 
यदि बचाना चाहते हो अपनी ज़िंदगी 
सख्त बने रहना और साबुत! 
            :: :: :: 

3 comments:

  1. जब तक माहौल साजगार न हो जाए ..............सख्त बने रहना और साबुत !
    क्या बात है !! बहुत अच्छी कविता ! आभार मनोज जी !

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  2. लड़ने की ताकत देता है बीज ..... अलग सोच

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  3. जीने के लिए कोमलता से गुजर नहीं होता.मजबूत बनकर ही आहत होने से बचा जा सकता है.

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