Friday, June 29, 2012

बिली कालिन्स : कुत्ते को तौलना

बिली कालिंस की एक और कविता...   

 
कुत्ते को तौलना : बिली कालिन्स 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

यह अजीब है मेरे लिए और उसके लिए हैरत भरा 
जबकि मैं छोटे से बाथरूम में उसे थामे हुए हूँ अपने हाथों में, 
अपना संतुलन बनाता एक डगमगाती नीली तराजू पर.  

पर यही तरीका है किसी कुत्ते को तौलने का और आसान भी 
उसे एक जगह पर कायदे से बैठना सिखाने की बजाय 
अपनी जीभ बाहर निकाले, बिस्कुट का इंतज़ार करते हुए. 

पेन्सिल और कागज़ लेकर मैं अपना वजन घटाता हूँ 
हमारे कुल योग में से, बाक़ी बचा उसका वजन निकालने के लिए, 
और सोचने लगता हूँ कि क्या कोई समानता है यहाँ. 

इसका सम्बन्ध मेरे तुम्हें छोड़ने से तो नहीं हो सकता 
गोकि मैं कभी नहीं जान पाया कि क्या कुछ थी तुम, 
जब तक हमारे संयोजन में से खुद को घटा नहीं लिया मैंने.  

मेरे तुम्हें थामने की अपेक्षा तुमने ज्यादा थामा था मुझे अपनी बाहों में
उन अजीब और हैरत भरे महीनों के दौरान, और अब हम दोनों ही 
गुम हो चुके हैं अपरिचित और दूर की बस्तियों में. 
                              :: :: :: 

7 comments:

  1. किसी को जानने के लिए उससे अलग होना भी जरूरी हो जाता है !
    अच्छी कविता ,अच्छा अनुवाद !

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  2. अब यह हर सुबह की एक घटना जैसी हो चुकी है.... एक बहुत ही अच्छी कविता एक दूसरी भाषा और परिवेश में अवतरित होती हुई। आप सचमुच बहुत बड़ा काम कर रहे हैं , चुपचाप, निर्लिप्त और अकेले। आभार !

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  3. 'मैं कभी नहीं जान पाया कि क्या कुछ थी तुम,
    जब तक हमारे संयोजन में से खुद को घटा नहीं लिया मैंने.'
    So well put!

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  4. Ek behtareen rachna aapke saujanya se padhne ko mili-Dhanyavad.

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  5. मनोज भाई , विश्वकविता के कविताविश्व से रूबरू करवाने ले लिए बहुत बहुत शुक्रिया.

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  6. वजन करने और उसे घटाने- बढ़ाने के बहाने मन को टटोलती और यादों की गठरी खोलती हुई कविता.

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  7. न पढ़ पाती तो वाकई चूक जाती.
    Excellent.

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