Friday, June 22, 2012

राबर्तो हुआरोज : गुलाब, प्यार और कविता

राबर्तो हुआरोज की एक और कविता...   

 
राबर्तो हुआरोज की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

यदि यह एक है, 
तो दो क्या होगा? 

महज एक धन एक ही नहीं है यह.  
कभी-कभी यह दो होता है 
एक बने रहते हुए भी. 
वैसे ही जैसे कभी-कभी एक 
बंद नहीं करता दो होना. 

साफ़ नहीं है यथार्थ का लेखा-जोखा 
या कम से कम परिणामों का 
हमारा वाचन. 
इसलिए हमसे छूट जाता है 
जो बीच में रहता है एक और एक के, 
जो बस भीतर होता है एक के 
छूट जाता है हमसे, 
जो होता है ऋण एक में 
छूट जाता हमसे, 
शून्य छूट जाता है हमसे 
जो हमेशा बाहर निकल जाता है या 
साथ रहता है किसी एक और किसी दो के. 

गुलाब -- क्या यह एक है? 
प्यार -- क्या यह दो है? 
कविता -- क्या यह कुछ है दोनों में से? 
               :: :: :: 

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर ....बहुत शुध्द कविता.साल्वाडोर डाली की पेंटिंग की याद दिला दे एसी कविता.धन्यवाद.

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  2. i'm confused............
    गुलाब प्यार और कविता की भूलभुलैया में हूँ.....

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  3. मनोज भाई, आप पूरे यत्न और निष्ठा से अनुवाद करते हैं...शब्दों का अनुवाद सम्भव है, पर उनके बीच की चुप्पी को अपने शब्दों में ढ़ालना कठिन होता है...उन चुप्पी के भावों को अनुवाद करना, मूल रचना से भी कठिन होता है। फिर भी आपके सार्थक प्रयास के लिए बहुत-बहुत बधाई...

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  4. गुलाब प्यार कविता -तीनों को समझने महसूस करने के लिए किसी और की जरूरत होती है.

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  5. एक जो हमेशा एक संभावना के साथ रहता है वास्तव में दो ही होता है और जो हम से हमेशा छुट जाता है और इस तरह यथार्थ का सही आकलन नहीं हो पाता है ! गुलाब दो भी है ,प्यार एक भी है,और कविता दोनों भी और एक भी !

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