हाल सिरोविट्ज़ की एक और कविता...
किताबें देना : हाल सिरोविट्ज़
(अनुवाद : मनोज पटेल)
तुम हमेशा देते ही रहते हो, मेरे डाक्टर ने कहा.
तुम्हें सीखना होगा कि लिया जाता है कैसे. जब भी
तुम मिलते हो किसी स्त्री से तो पहला काम करते हो
उसे पढ़ने के लिए अपनी किताबें देने का. तुम सोचते हो
कि उन्हें लौटाने के लिए उसे दुबारा मिलना होगा तुमसे.
मगर होता यह है कि उसके पास समय नहीं होता
उन्हें पढ़ने का, और वह डरती है कि यदि वह तुमसे दुबारा मिली
तो तुम उससे अपेक्षा करोगे किताबों के बारे में बात करने की,
और कुछ और किताबें देना चाहोगे उसे. इसलिए वह
रद्द कर देती है मुलाक़ात. तो हुआ यह है कि काफी किताबें गँवा
चुके हो तुम. तुम्हें मांगनी चाहिए उसकी किताबें.
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हुआ यह कि काफी किताबें गँवा चुके हो तुम ,
ReplyDeleteतुम्हे मांगनी चाहिए उसकी किताबें ...बहुत ही शानदार कविता .प्रतिदिन की तरह आभार .
किताबें देने के पहले जरूरी है कि हम जान लें कि उसकी अभिरुचि पढ़ने में है भी कि नहीं !
ReplyDeleteइस तरह किताबों को दांव पर लगाना ठीक नहीं !
बेहतर सलाह दी डाक्टर ने ! किताबें लेने के बाद वह जरूर आएगी वापस लेने !
अच्छी कविता का अच्छा अनुवाद ! आभार मनोज जी !
आभार
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढी ,मन को भाई ,हमने चर्चाई , आकर देख न सकें आप , हाय इत्ते तो नहीं है हरज़ाई , इसी टीप को क्लिकिये और पहुंचिए आज के बुलेटिन पन्ने पर
ReplyDeleteumda prastuti
ReplyDeleteक्या बात है...!! इतनी अच्छी अच्छी कविताएं यूँ ही पढते रहे तो हम तो लिखने से रहे...!! कोम्लेक्स में आ जाते है ---
ReplyDeleteकिताबें बात करने का द्वार खोलती हैं बशर्ते कि दूसरा पक्ष भी इसके लिए तैयार हो.
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