Monday, June 25, 2012

ऊलाव हाउगे की कविता

नार्वेजियन कवि ऊलाव हाउगे की एक और कविता...   

 
कटाई वाला कुंदा : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मुश्किल होता है 
कुल्हाड़ी के नीचे का कुंदा होना, 
महसूस किया है मैंने. 
मगर मैंने सीखा 
जब वे चुन लें  
सिर्फ मुझे: 
निश्चल और खामोश रहो! 

ऊपर ढलान पर मेरे सहोदर ठूंठ 
निकाल रहे हैं नई पत्तियाँ. 
उन्हें चीरने दो 
यहाँ आँगन में! 
मैं ऐंठता हूँ, इठलाता हूँ 
अपने खपचीदार ताज में. 
            :: :: :: 

5 comments:

  1. "मगर मैंने सीखा
    जब वे चुन लें
    सिर्फ़ मुझे
    मिश्च्ल और खामोश रहो..." वर्ग-विश्वासघात का अच्छा रूपक है. हमारे यहाँ काफ़ी शिक्ष्प्र्द लोककथाएं मिलती हैं, इस विषय पर.

    ReplyDelete
  2. वाह.....
    बहुत बढ़िया...........

    अनु

    ReplyDelete
  3. हर ठूंठ की किस्मत एक सी नहीं होती ......

    ReplyDelete
  4. दर्द का व्यान ... बहुत खूब

    ReplyDelete
  5. असहायता की करुण उक्ति.

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...