नार्वेजियन कवि ऊलाव हाउगे की एक और कविता...
कटाई वाला कुंदा : ऊलाव हाउगे
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मुश्किल होता है
कुल्हाड़ी के नीचे का कुंदा होना,
महसूस किया है मैंने.
मगर मैंने सीखा
जब वे चुन लें
सिर्फ मुझे:
निश्चल और खामोश रहो!
ऊपर ढलान पर मेरे सहोदर ठूंठ
निकाल रहे हैं नई पत्तियाँ.
उन्हें चीरने दो
यहाँ आँगन में!
मैं ऐंठता हूँ, इठलाता हूँ
अपने खपचीदार ताज में.
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"मगर मैंने सीखा
ReplyDeleteजब वे चुन लें
सिर्फ़ मुझे
मिश्च्ल और खामोश रहो..." वर्ग-विश्वासघात का अच्छा रूपक है. हमारे यहाँ काफ़ी शिक्ष्प्र्द लोककथाएं मिलती हैं, इस विषय पर.
वाह.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...........
अनु
हर ठूंठ की किस्मत एक सी नहीं होती ......
ReplyDeleteदर्द का व्यान ... बहुत खूब
ReplyDeleteअसहायता की करुण उक्ति.
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