अफजाल अहमद सैयद की एक और कविता...
जितनी देर में एक रोटी पकेगी : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
जितनी देर में एक रोटी पकेगी
मैं तुम्हारे लिए एक गीत लिख चुका हूँगा
जितनी देर में एक मश्कीज़ा भरेगा
तुम उसे याद करके गा चुकी होगी
अजनबी तुम गीत काहे से लिखते हो
नमक से
रोटी काहे से खाते हो
नमक से
मश्कीज़ा काहे से भरते हो
नमक से
लड़की तुम गीत काहे से गाती हो
पानी से
रोटी काहे से खाती हो
पानी से
मश्कीज़ा काहे से भरती हो
पानी से
पानी और नमक मिलकर क्या बनता है
समुंदर बनता है
जितनी देर में मेरे घोड़े की नाल ठुक जाएगी
हम समुंदर से एक लहर तोड़ चुके होंगे
जितनी देर में घंटी की आवाज़ पर कलई हो चुकी होगी
हम एक जंगली कश्ती को सधा चुके होंगे
अजनबी तुम घोड़े की नाल काहे से ठोंकते हो
टूटे हुए चाँद से मेरी जान
तुम घंटी की आवाज़ काहे से कलई करते हो
टूटे हुए चाँद से मेरी जान
तुम मुझे काहे से तश्बीह दोगे
टूटे हुए चाँद से मेरी जान
लड़की तुम समुंदर से लहर काहे से तोड़ती हो
तुम्हारी तलवार से मेरी जान
तुम जंगली कश्तियों को काहे से सधाती हो
तुम्हारी तलवार से मेरी जान
तुम मुझे काहे से ज्यादा पसंद करती हो
तुम्हारी तलवार से मेरी जान
जितनी देर में यह समुंदर तय होगा
मैं और तुम बिछड़ चुके होंगे
जितनी देर में तुम मुझे भूल चुकी होगी
मैं मर चुका हूँगा
अजनबी तुम समुंदर काहे से तय करोगे
अपनी ज़िद से
मैं तुम्हें काहे से भूल चुकी हूंगी
अपनी ज़िद से
अजनबी तुम काहे से मर चुके होगे
अपनी ज़िद से
लड़की हम काहे से बिछड़ चुके होंगे
मुझे नहीं मालूम
मैं काहे से मर चुका हूँगा
मुझे नहीं मालूम
रोटी कितनी देर में पक चुकी होगी
मुझे नहीं मालूम
:: :: ::
मश्कीज़ा : छोटी मश्क (पानी भरने की चमड़े की थैली)
तश्बीह : उपमा
क्या शानदार कविता है! अद्भुत संवाद! नमक और पानी की महिमा का बेहद अर्थपूर्ण बखान!
ReplyDeleteबढ़िया विचार कविता और भावानुवाद
ReplyDeleteमनोज भाई ,फिर एक बार शुक्रिया.आप इतनी अदभुत रचनाएं चुन-चुन कर ले आते हो की शब्द और अभिव्यक्ति में श्रद्धा अगर डगमगा रही हो तो फिर कायम हो जाय.मसलन प्रस्तुत कविता में जोते गए सभी शब्द कवी की कलम के स्पर्श से विभावना में परावर्तित हो गए है.यह कितनी तिलस्मी बात है की आप की नजरों के सामने जैसे एक बीज वृक्ष बन जाता है----पढते पढते-!!
ReplyDeleteपानी और नमक मिलकर क्या बनता है? वाकई अद्भुत!
ReplyDeleteनमक और पानी मिलकर क्या बनता है? वाकई अद्भुत!!
ReplyDeleteअदभुत ...
ReplyDeletemnoj bhai , this is one of the best on your blog. lave this poem. as if Im listening to a Folk song in a distant Himalayan Village ! V
ReplyDeleteक्या बात है ...कमाल की कविता ! सवालौर जवाब में साधी बेहद खूबसूरत कविता ! आभार मनोज जी !
ReplyDeleteअश्रुधार की मुस्कान सी झिलमिलाती जिंदगी
ReplyDeleteअश्रुधार की मुस्कानों सी झिलमिलाती कृति
ReplyDeleteyaad karne yogya..aur kavi ki prashansha mein jagah jagah sunaane yogya..beshak..anuvaadak ko bhoole bina..:)..shukriya manoj..
ReplyDeleteनदी ,समंदर, टूटे चाँद, तलवार की यह कविता सुन्दर भावों की कठोर हकीकत दर्शाती है.
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