Thursday, June 14, 2012

फदील अल-अज्ज़वी की कविता

आज फदील अल-अज्ज़वी की एक कविता...  

 
ईश्वर और शैतान : फदील अल-अज्ज़वी 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

पहले अध्याय में हम बात करते हैं 
उस शैतान के बारे में जो चुनौती देता है ईश्वर को. 
दूसरे अध्याय में 
शैतान को स्वर्ग से निकाले जाने के बारे में. 
तीसरे अध्याय में 
आदम की दुविधा  
और चौथे में 
जल-प्रलय के बारे में. 

फिर आखिरकार कोई आ जाता है 
और झपट ले जाता है शैतान को 
और भला ईश्वर राज करने लगता है पूरी दुनिया पर. 

हम किस चीज के बारे में बात करेंगे 
पांचवे अध्याय में 
और छठवें 
और सातवें 
और आठवें अध्याय में? 
                    :: :: :: 

13 comments:

  1. पांचवें अध्याय में-
    हम बात करेंगे
    शैतान के ईश्वर बन जाने के बारे में
    और छठवें अध्याय में
    ईश्वर के हाथों
    उसकी ताजपोशी के बारे में
    और सातवें अध्याय में
    हम कोई बात नहीं करेंगे !

    ReplyDelete
    Replies
    1. सातवें अध्याय से
      मैं बात करना शुरू करूग़ा
      आदमी के बारे
      और ईश्वर को अपने पास बिठा कर
      बीड़ी पिलाऊँगा !

      Delete
  2. कहानी चार अध्यायों में ही खत्म हो गई जब, तो बाद के तमाम अध्याय तो खाली ही रहेंगे. ईश्वर जब राज करने लगे तो खालीपन के अलावा बच भी क्या सकता है. ईश्वर भी तो एक तरह का खालीपन ही है. अच्छी लगी कविता. खूब!

    ReplyDelete
    Replies
    1. ईश्वर खालीपन नही सर, वह सत्त है आदमी का . उस के सुख दुख मे उस की सांत्वना है....... लेकिन सत्ता संरचना ने उसे राजा बना कर आदमी की पीठ पर बिठा दिया .... शायद खुद आदमी ने :( :(

      Delete
  3. चार अध्याय ही काफी है

    ReplyDelete
  4. मेरे ख्याल से चौथे अद्ध्याय से आगे कई संभावनाएं हैं. मसलन यह कि पांचवें अद्ध्याय में हम ईश्वर के शैतान और शैतान के ईश्वर में इस तरह तब्दील होने की बातें करेंगे, जैसे दोनों में फर्क ही न हो. छठे अद्ध्याय में दोनों को दुनिया से बलात निकाले जाने की सकर्मक बातें और उसके बाद इस मानव केंद्रित (एंथ्रोपोसेंट्रिक) दुनिया को बेहतर बनाने की जद्दो-जेहद के अद्ध्याय जुडते चले जायेंगे.
    ये है दरअसल कविता, जिसका अंत शुरुआत बन जाय कल्पना के उड़ान की. दुर्लभ चुनाव और सर्वग्राह्य अनुवाद प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.

    ReplyDelete
  5. मेरे ख्याल से चौथे अद्ध्याय से आगे कई संभावनाएं हैं. मसलन यह कि पांचवें अद्ध्याय में हम ईश्वर के शैतान और शैतान के ईश्वर में इस तरह तब्दील होने की बातें करेंगे, जैसे दोनों में फर्क ही न हो. छठे अद्ध्याय में दोनों को दुनिया से बलात निकाले जाने की सकर्मक बातें और उसके बाद इस मानव केंद्रित (एंथ्रोपोसेंट्रिक) दुनिया को बेहतर बनाने की जद्दो-जेहद के अद्ध्याय जुडते चले जायेंगे.
    ये है दरअसल कविता, जिसका अंत शुरुआत बन जाय कल्पना के उड़ान की. दुर्लभ चुनाव और सर्वग्राह्य अनुवाद प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.

    ReplyDelete
  6. आओ हम मिल कर इस ईश्वर को फिर से आदमी बनाएं;-

    ईश्वर
    मेरे दोस्त
    मेरे पास आ !
    यहाँ बैठ
    बीड़ी पिलाऊँगा
    चाय पीते हैं

    इतने दिन हो गए
    आज तुम्हारी गोद में सोऊँगा
    तुम मुझे परियों की कहानी सुनाना

    फिर न जाने कब फ़ुर्सत होगी !

    ReplyDelete
  7. वाह ! कविता से ज्यादा रोचक तो टिप्पणियाँ हैं...सभी का आभार !

    ReplyDelete
  8. हम सबमें शैतान के बस जाने के बारे में.कोई भी तो उससे पूर्णतः बच नहीं पता है.

    ReplyDelete
  9. अनीता जी ने बहुत सही कहा,मनोज जी ...यह अपने आप में रचना की सार्थकता है जो इतनी बहस कड़ी करे.बहुत बहुत शुक्रिया एसी अदभुत रचनाओं के चयन और प्रस्तुति के लिए.

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...