आज फदील अल-अज्ज़वी की एक कविता...
ईश्वर और शैतान : फदील अल-अज्ज़वी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पहले अध्याय में हम बात करते हैं
उस शैतान के बारे में जो चुनौती देता है ईश्वर को.
दूसरे अध्याय में
शैतान को स्वर्ग से निकाले जाने के बारे में.
तीसरे अध्याय में
आदम की दुविधा
और चौथे में
जल-प्रलय के बारे में.
फिर आखिरकार कोई आ जाता है
और झपट ले जाता है शैतान को
और भला ईश्वर राज करने लगता है पूरी दुनिया पर.
हम किस चीज के बारे में बात करेंगे
पांचवे अध्याय में
और छठवें
और सातवें
और आठवें अध्याय में?
:: :: ::
पांचवें अध्याय में-
ReplyDeleteहम बात करेंगे
शैतान के ईश्वर बन जाने के बारे में
और छठवें अध्याय में
ईश्वर के हाथों
उसकी ताजपोशी के बारे में
और सातवें अध्याय में
हम कोई बात नहीं करेंगे !
सातवें अध्याय से
Deleteमैं बात करना शुरू करूग़ा
आदमी के बारे
और ईश्वर को अपने पास बिठा कर
बीड़ी पिलाऊँगा !
कहानी चार अध्यायों में ही खत्म हो गई जब, तो बाद के तमाम अध्याय तो खाली ही रहेंगे. ईश्वर जब राज करने लगे तो खालीपन के अलावा बच भी क्या सकता है. ईश्वर भी तो एक तरह का खालीपन ही है. अच्छी लगी कविता. खूब!
ReplyDeleteईश्वर खालीपन नही सर, वह सत्त है आदमी का . उस के सुख दुख मे उस की सांत्वना है....... लेकिन सत्ता संरचना ने उसे राजा बना कर आदमी की पीठ पर बिठा दिया .... शायद खुद आदमी ने :( :(
Deleteचार अध्याय ही काफी है
ReplyDeleteमेरे ख्याल से चौथे अद्ध्याय से आगे कई संभावनाएं हैं. मसलन यह कि पांचवें अद्ध्याय में हम ईश्वर के शैतान और शैतान के ईश्वर में इस तरह तब्दील होने की बातें करेंगे, जैसे दोनों में फर्क ही न हो. छठे अद्ध्याय में दोनों को दुनिया से बलात निकाले जाने की सकर्मक बातें और उसके बाद इस मानव केंद्रित (एंथ्रोपोसेंट्रिक) दुनिया को बेहतर बनाने की जद्दो-जेहद के अद्ध्याय जुडते चले जायेंगे.
ReplyDeleteये है दरअसल कविता, जिसका अंत शुरुआत बन जाय कल्पना के उड़ान की. दुर्लभ चुनाव और सर्वग्राह्य अनुवाद प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
सहमत।सुंदर विचार।
Deleteमेरे ख्याल से चौथे अद्ध्याय से आगे कई संभावनाएं हैं. मसलन यह कि पांचवें अद्ध्याय में हम ईश्वर के शैतान और शैतान के ईश्वर में इस तरह तब्दील होने की बातें करेंगे, जैसे दोनों में फर्क ही न हो. छठे अद्ध्याय में दोनों को दुनिया से बलात निकाले जाने की सकर्मक बातें और उसके बाद इस मानव केंद्रित (एंथ्रोपोसेंट्रिक) दुनिया को बेहतर बनाने की जद्दो-जेहद के अद्ध्याय जुडते चले जायेंगे.
ReplyDeleteये है दरअसल कविता, जिसका अंत शुरुआत बन जाय कल्पना के उड़ान की. दुर्लभ चुनाव और सर्वग्राह्य अनुवाद प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
आओ हम मिल कर इस ईश्वर को फिर से आदमी बनाएं;-
ReplyDeleteईश्वर
मेरे दोस्त
मेरे पास आ !
यहाँ बैठ
बीड़ी पिलाऊँगा
चाय पीते हैं
इतने दिन हो गए
आज तुम्हारी गोद में सोऊँगा
तुम मुझे परियों की कहानी सुनाना
फिर न जाने कब फ़ुर्सत होगी !
वाह ! कविता से ज्यादा रोचक तो टिप्पणियाँ हैं...सभी का आभार !
ReplyDeleteहम सबमें शैतान के बस जाने के बारे में.कोई भी तो उससे पूर्णतः बच नहीं पता है.
ReplyDeleteअनीता जी ने बहुत सही कहा,मनोज जी ...यह अपने आप में रचना की सार्थकता है जो इतनी बहस कड़ी करे.बहुत बहुत शुक्रिया एसी अदभुत रचनाओं के चयन और प्रस्तुति के लिए.
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह्ह्।
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