Tuesday, June 19, 2012

यानिस रित्सोस की दो कविताएँ

यानिस रित्सोस की दो कविताएँ...   

 
यानिस रित्सोस की दो कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

रूई के फाहे 
जख्म के लिए नहीं -- 
जबकि 
रोशन होती जा रही शाम -- 
मुंह के लिए 
कानों के लिए 
आँखों के लिए. 
                     एथेंस, १८ जनवरी १९७८ 
     :: :: ::  

संगमरमर 
जो रचता है बुत को 
और जो 
बुत नहीं है 
और जो बचा है 
पहाड़ों में छिपा हुआ दूर तक 
मुझे राय दी गई 
उसे प्रकट न करने की, बस 
उन्होंने मुझे यह नहीं बताया कि कैसे. 
                     एथेंस, १८ जनवरी १९७८ 
     :: :: ::      

4 comments:

  1. "मुंह के लिए
    कानों के लिए
    आँखों के लिए"...रुई के फाहे ज़ख्मों के लिए नहीं! क्या बात कह दी है! तीन बंदरों का रूपक सामने आगया.

    "उन्होंने मुझे यह नहीं बताया कि कैसे." छिपाने का तरीक़ा बताए बिना? वल्लाह!

    ReplyDelete
  2. वाह.....

    बहुत खूबसूरत...
    अनु

    ReplyDelete
  3. रुई के फाये यहाँ मृतक के लिए लगते हैं क्योंकि शाम की बात भी है और छिपा संगमरमर कोई सुंदरी है.

    ReplyDelete
  4. क्या कोई कवी को चुप कराया जा सकता है...? क्या बात है....!! दुनियाभर के प्रसाशन चाहे दुनियाभर की रुई जमा कर दे शब्द प्रगट हो ही जाएगा.....बहुत बहुत धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिए.

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...