यानिस रित्सोस की दो कविताएँ...
संगमरमर
जो रचता है बुत को
और जो
बुत नहीं है
यानिस रित्सोस की दो कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
रूई के फाहे
जख्म के लिए नहीं --
जबकि
रोशन होती जा रही शाम --
मुंह के लिए
कानों के लिए
आँखों के लिए.
एथेंस, १८ जनवरी १९७८
:: :: ::
जो रचता है बुत को
और जो
बुत नहीं है
और जो बचा है
पहाड़ों में छिपा हुआ दूर तक
मुझे राय दी गई
उसे प्रकट न करने की, बस
उन्होंने मुझे यह नहीं बताया कि कैसे.
एथेंस, १८ जनवरी १९७८
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"मुंह के लिए
ReplyDeleteकानों के लिए
आँखों के लिए"...रुई के फाहे ज़ख्मों के लिए नहीं! क्या बात कह दी है! तीन बंदरों का रूपक सामने आगया.
"उन्होंने मुझे यह नहीं बताया कि कैसे." छिपाने का तरीक़ा बताए बिना? वल्लाह!
वाह.....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत...
अनु
रुई के फाये यहाँ मृतक के लिए लगते हैं क्योंकि शाम की बात भी है और छिपा संगमरमर कोई सुंदरी है.
ReplyDeleteक्या कोई कवी को चुप कराया जा सकता है...? क्या बात है....!! दुनियाभर के प्रसाशन चाहे दुनियाभर की रुई जमा कर दे शब्द प्रगट हो ही जाएगा.....बहुत बहुत धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिए.
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