Friday, June 8, 2012

ऊलाव हाउगे : समुद्र तट पर

ऊलाव हाउगे की एक और कविता...  

 
समुद्र तट पर : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

उसने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि अपनी पीठ फेर ली तुम्हारी ओर -- और 
चली गई. 
और हवा ने और बादलों ने, हाँ समुद्र तक ने फेर ली 
अपनी काली पड़ती पीठ; डुबकी लगा लिया तट पर पड़े पत्थरों ने, 
हरेक लहर, हरेक तिनका निकल भागा  
किसी और तट के लिए. 
                    :: :: :: 

4 comments:

  1. har ek lahar har ek tinka nikal bhaga..

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  2. उसके जाते ही वह सब जो जीवंत था चला गया, रह गया एक सूनापन और मैं !

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  3. किसी एक के विमुख होने से दुनिया ही बेगानी लगने लगती है.

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