ऊलाव हाउगे की एक और कविता...
समुद्र तट पर : ऊलाव हाउगे
(अनुवाद : मनोज पटेल)
उसने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि अपनी पीठ फेर ली तुम्हारी ओर -- और
चली गई.
और हवा ने और बादलों ने, हाँ समुद्र तक ने फेर ली
अपनी काली पड़ती पीठ; डुबकी लगा लिया तट पर पड़े पत्थरों ने,
हरेक लहर, हरेक तिनका निकल भागा
किसी और तट के लिए.
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har ek lahar har ek tinka nikal bhaga..
ReplyDeletekisi aur tat ke liye
ReplyDeleteउसके जाते ही वह सब जो जीवंत था चला गया, रह गया एक सूनापन और मैं !
ReplyDeleteकिसी एक के विमुख होने से दुनिया ही बेगानी लगने लगती है.
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