फ़राज़ बयरकदार की जेल में लिखी लम्बी कविता नामौजूदगी के आईने का पहला हिस्सा आप पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है इसी कविता के कुछ और अंश.
नामौजूदगी के आईने : फ़राज़ बयरकदार
(अनुवाद : मनोज पटेल)
नामौजूदगी के आईने : फ़राज़ बयरकदार
(अनुवाद : मनोज पटेल)
40
यह न तो तरफदारी है
न ही शेखी
इस दुनिया में या
इसके बाद की दुनिया में
इससे बड़ा
और कोई कब्रिस्तान नहीं :
जिसे मैं कहता हूँ
अपना देश
41
क्या होता है
जब वे फाटक खोलते हैं ?
क्या होता है
जब वे फाटक बंद करते हैं ?
जैसे कांच का एक भारी आसमान
फाड़ दिया जाता हो सातवें आसमान से
इसका गिरना पीसता है कानों को
और कुछ नहीं सिर्फ खामोशी के बुलबुले
और खनखनाहट
समय के गले में
42
अगर खुद पर ही नहीं अख्तियार मेरा
मुझे क्यों नहीं उम्मीद रखनी चाहिए
असंभव से ?
47
भाग्यशाली हो तुम स्त्री
पंख नहीं है मेरे पास
कैसे तस्वीर बनाऊंगा मैं आकाश की ?
आकाश नहीं है मेरे पास
क्या करूंगा मैं पंख का ?
54
एक अकेली चिड़िया ही काफी है
आसमान को
गिरने से रोकने के लिए
57
उसके होंठों पे मुस्कान है
और आँखों में आंसू
तस्वीर में से
पुकारती है वह :
डैडी !
68
एक-दो बार दम लेने के बाद
बीते वक़्त की याद का प्याला
छलकने और टूटने के बाद
एक ईश्वर
एक कुत्ते
या एक तानाशाह के बाद
मेरी माँ तह करेगी
चौदह आसमान
मेरी नामौजूदगी के बाद
78
वैज्ञानिक और पुजारी
इतिहासकार और दार्शनिक
भविष्यवक्ता, नेता और ज्ञानी
धर्म,
पार्टियां,
और सेनाएं
मगर सत्य नहीं
92
काश कि मैं एक साथ पी पाता
चार सिगरेटें :
जन्म
प्रेम
आजादी
और मौत,
जेलर
मुझे पीने दो इन्हें !
और जारी रखो हमसे बातचीत
93
थोड़ी देर पहले
मैनें एक संतरा निचोड़ा
अपने दिल की तरह का
उसमें दहकती हुई कुछ अल्कोहल मिलाई
अतीत की तरह की
एक गहरी सांस ली
एक लम्बी और पतली सी सिगरेट सुलगाई
जिसका धुंआ उस स्त्री की स्मृति की तरह है
जिसे मैं कभी जानता था
और फिर मुस्कराया
खुद को हैरत में डालने के लिए
नमस्कार ज़िंदगी
नमस्कार दोस्तों
नमस्कार मुझे भी
आज रात मैनें न्योता है आप सबको
अपनी कैद के
पन्द्रहवें साल के उदघाटन के लिए
आपमें से कौन
काटेगा यह फीता
कांटेदार बाड़ का ?
मेरी उदासी के लिए मुझे दोषी न ठहराइए !
मैं अपने लिए उदास नहीं हूँ
बस दुखी हूँ कि
कितने बच्चे जन्म ले चुके हैं इस बीच
पीना चाहता था उनकी तंदरुस्ती के नाम
और रोना चाहता था
बीते वक़्त की याद में
99
मैं दाखिल हुआ था जेल में
मरने के लिए
पूरी तरह तैयार
अब, जाने कितने सालों के बाद
ख्वाब सजाया है मैनें विदाई का
पूरी तरह तैयार होकर ज़िंदगी के लिए
सयदनाया जेल 1997-2000
:: :: ::
जिसका धुंआ उस स्त्री की स्मृति की तरह है
ReplyDeleteजिसे मैं कभी जानता था
और फिर मुस्कराया
खुद को हैरत में डालने के लिए
सुन्दर पंक्तियाँ . बधाई मनोज भाई इस सुन्दर अनुवाद के लिए .
amazing!
ReplyDeleteएक अकेली चिड़िया ही काफी है आसमान को गिरने से रोकने के लिए..लाजवाब..असली कविता...
ReplyDeleteएक अकेली चिड़िया ही काफी आसमान को गिरने से रोकने के लिए...यकीनन
ReplyDeleteकाश की मैं एक साथ पी पाता
चार सिगरटें
जन्म
प्रेम
आजादी
और मौत...
वाह! सभी कवितायेँ बेहतरीन हैं. झरने सा बहता अनुवाद.
भाई, वाह ! धर्म संकट में डाल दिया आपने. कहां-कहां से पंक्तियां चुनूं, और यहां ला कर पधराऊं? ग़ज़ब की विविधता है, और गहराई भी. बधाई-बधाई-बधाई.
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