Tuesday, May 3, 2011

माइआ अंजालो : गुजरता वक़्त


आज अश्वेत अमेरिकी कवियत्री माइआ अंजालो की यह छोटी सी कविता आपके सामने पेश कर रहा हूँ जो मुझे बहुत पसंद है... 














गुजरता वक़्त  : माइआ अंजालो 

(अनुवाद : मनोज पटेल)

तुम्हारी चमड़ी जैसे सुबह 
मेरी जैसे शाम.

एक प्रतीक है उस शुरूआत का 
जिसका अंत निश्चित है.

दूसरी, उस अंत का 
जिसकी शुरूआत निश्चित है.  






6 comments:

  1. भैया , आपके अनुवाद कितने सुन्दर हैं , और किस कदर मौलिक .. इनकी पुस्तक निकलनी चाहिए . ये स्वार्थ रहित सेवा फलनी चाहिए .
    दीदी की ओर से बधाई स्वीकार कीजिये . खुद को रोक नहीं पाए , इसलिए व्यक्तिगत रूप से बधाई दे रहे हैं . आपकी library कितनी rich होगी .. यही सोच रहे थे . और इतना सब पढ़ डालना .

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  2. जिसकी शुरुआत निश्चित है...

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  3. ओह !! कितनी गहरी बात कही ,गज़ब !

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  4. ... जैसे मेरी शाम ...!

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  5. आपने "माइआ अंजालो" को हमारी संवेदनाओं के बहुत करीब ला दिया है. एक थरथराता और खरज भरा एहसास दे जाती हैं वे! इसका सेतु आपका जीवंत पुनर्सृजन है! अनुवाद कहते हुए मन मसोसना पडता है......

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