इतालो काल्विनो द्वारा संकलित इटली की लोककथाओं से एक और कहानी...
इटली की लोककथा - 3 : चमकीली मछली
(अनुवाद : मनोज पटेल)
एक बहुत शरीफ बूढा आदमी था जिसके सारे बेटे मर चुके थे, और उसे यह नहीं सूझ रहा था कि उसका और उसकी बीबी का गुजारा कैसे होगा क्योंकि वह भी बूढ़ी और बीमार थी. हर रोज वह जंगल में जाता और वहां से जलावन बटोर कर उसे बेंचता ताकि वह राशन खरीद सके और किसी तरह गुजर-बसर कर सके.
एक दिन जब वह दुखी मन से जंगल से गुजर रहा था, उसे लम्बी दाढ़ी वाला एक भला आदमी मिला, उसने कहा, "मैं तुम्हारी मुसीबतों के बारे में जानता हूँ और तुम्हारी मदद करूंगा. यह लो इस बटुए में सौ रूपए हैं."
बूढ़े ने बटुआ ले लिया और बेहोश होकर गिर पड़ा. जब उसे होश आया, भला आदमी गायब हो चुका था. बूढ़ा घर पहुंचा और अपनी बीबी को एक भी शब्द बताए बिना बटुए को गोबर के ढेर में छुपा दिया. "अगर मैनें उसे पैसा दे दिया तो वह फ़ौरन ही खर्च कर डालेगी..." दूसरे दिन वह हमेशा की तरह फिर जंगल में गया.
शाम को उसने खाने की मेज पर तरह-तरह के व्यंजन सजे देखे. "तुम यह सब कैसे खरीद लाई ?" उसने शंका करते हुए पूछा.
"मैनें गोबर की खाद बेंच डाली," उसकी बीबी ने बताया.
"अभागी ! मैनें उसमें सौ रूपए छिपाए थे !"
अगले दिन बूढ़ा और ज्यादा आहें भरते हुए जंगल से गुजर रहा था. उसे फिर से वही लम्बी दाढ़ी वाला भला आदमी मिला. "मुझे तुम्हारी बदकिस्मती के बारे में पता है," उसने कहा. "शांत हो जाओ. यह लो सौ रूपए और."
इस बार बूढ़े ने पैसों को राख के ढेर में छुपा दिया. अगले दिन उसकी बीबी ने राख भी बेंच कर एक और शानदार दावत का इंतजाम किया. जब बूढ़े ने लौटकर यह सब देखा तो उससे एक कौर भी न खाया गया और वह अपने बाल नोचते हुए बिस्तर पर लेट गया.
अगली सुबह वह जंगल में बैठा रो रहा था जब फिर से वह भला आदमी प्रकट हुआ. "इस बार मैं तुम्हें पैसे नहीं दूंगा. यह चौबीस मेढक लो और इन्हें बेंचकर जो सबसे बड़ी मछली तुम्हें मिले, खरीद लेना."
बूढ़े ने मेढकों को बेंचकर एक मछली खरीद ली. रात में उसने पाया कि वह जगमगा रही थी ; उससे बहुत तेज रोशनी निकलती थी जो चारो ओर उजाला कर रही थी. उसे पकड़ना एक लालटेन लेकर चलने जैसा था. शाम को उसने मछली को तरोताजा बनाए रखने के लिए उसे खिड़की के बाहर लटका दिया. वह अंधेरी और तूफानी रात थी. ऊंची-ऊंची लहरों के बीच समुद्र में फंसे मछुवारे अपना रास्ता नहीं पा रहे थे. खिड़की पर रोशनी देखकर उन्होंने उसी तरफ अपनी नाव खेई और बच गए. उन्होंने बूढ़े को मछलियों से हुई कमाई का आधा हिस्सा दे दिया और उससे समझौता किया कि यदि वह हर रात खिड़की पर अपनी मछली लटका दिया करे, तो हर रात की कमाई में से उसे भी हिस्सा मिलेगा. उन्होंने ऐसा ही किया और उस शरीफ बूढ़े आदमी के सारे दुःख दूर हो गए.
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वाह ! कर भला तो हो भला...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteये हुई न बात!
ReplyDeleteबढ़िया कथा !
ReplyDeleteye badee achchi rahii
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