फदील अल-अज्ज़वी की कविताओं के क्रम में आज उनकी यह कविता...
हुक्मउदूली : फदील अल-अज्ज़वी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पहले हव्वा उतरी स्वर्ग से फिर उसके पीछे-पीछे आदम.
उन्होंने गुलज़ार किया धरती को, ऊंची मीनारें बनाईं, बीहड़ में पत्थर के शहर बसाए,
और समुन्दर पर धातु के बने जहाज.
उन्होंने इंसान को पैदा किया जो नस्लों में बदल गया और फिर इन नस्लों ने मुल्कों को पैदा किया.
वे गले तक ठूंस लिया करते
और कभी जानलेवा भूख से अचेत भी हो जाते थे,
समय बीतने के साथ खून से सराबोर शान की तलाश में
वे जंग में मुब्तिला हो गए
जिसकी व्याख्या की दार्शनिकों ने
और जिसके कसीदे पढ़े शायरों ने.
कहाँ है अपने सेब पर दांत गड़ाती हुई वह पहली माँ, हुक्मउदूली करती हुई खुदा की भी ?
मैं चूमूंगा उसके होंठ और कहूंगा,
"शुक्रिया स्त्री,
पहली बाग़ी,
आजादी की सिरजनहार."
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behad sundar aur marmik..
ReplyDeleteऔर कभी जानलेवा भूख से अचेत भी हो जाते थे,
ReplyDeleteसमय बीतने के साथ खून से सराबोर शान की तलाश में
वे जंग में मुब्तिला हो गए
सुन्दर कविता मनोज भाई . आपका चयन आपके अनुवाद से किसी तरह कम नहीं है . बधाई .
बहुत सुंदर, सलाम हव्वा के नाम !
ReplyDeleteवाह .........पहली बागी ,आजादी की सिरजनहार !!...........कमाल की कविता ! धन्यवाद मनोज जी !
ReplyDeletemanoj bhai bahut marmik hai kavita
ReplyDeleteकहाँ है अपने सेब पर दाँत गड़ाती हुई वह पहली माँ, हुकमउदूली करती हुई खुदा की भी?
ReplyDeleteखूबसूरत कविता के चयन और अनुवाद दोनों के लिए धन्यवाद...